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The Address Class 11 Hindi Explanation

 

The Address Class 11 Hindi Explanation – Para-4



Meanwhile………………………remember that’.

इस बीच मैं स्टेशन पहुँच गई थी, रास्ते में मैंने किसी भी चीज पर कोई ध्यान नहीं दिया। मैं युद्ध के छिड़ने के बाद उन परिचित स्थानों पर पहली बार चल रही थी, पर मैं आवश्यकता से अधिक दूरी तय करने के मूड में नहीं थी। मैं उन सड़कों तथा घरों को देखकर अपने को दुखी नहीं करना चाहती, इन स्थानों से मेरी यादें जुड़ी थीं।

वापस गाड़ी में मैंने मिसेज डोर्लिंग की वही शक्ल देखी जैसी मैंने पहली बार मिलने पर देखी थी। जिस दिन मेरी माँ ने उसके बारे में बताया था, उसके बाद का वह दिन था। मैं जरा देर से सोकर उठी थी तथा सीढ़ियों से नीचे आने पर, मैंने पाया कि माँ किसी महिला को छोड़ने बाहर गई हैं। वह महिला चौड़ी पीठ या कमर वाली थी।

‘वह रही मेरी बेटी,’ माँ ने बताया। उसने मुझे इशारे से बुलाया।
महिला ने सर हिलाया, सूटकेस कोट रैंक के नीचे उठाया। वह एक भूरे रंग का कोट तथा आकृतिहीन हैट पहने थी।
‘क्या वह बहुत दूर रहती है?’ मैंने पूछा, जब मैंने महिला को भारी केस के साथ कठिनाईपूर्वक घर से बाहर निकलते देखा।
‘मार्कोनी स्ट्रीट में’ मेरी माँ ने बताया। ‘नम्बर-46 यह याद रखना।’

The Address Class 11 Hindi Explanation – Para-5



I had………………………for her’.

मैंने वह नम्बर याद रखा था। पर मैंने वहाँ जाने के लिए लम्बी प्रतीक्षा की। आजादी के बाद प्रारम्भिक दिनों में मेरी उन संग्रहीत चीजों में कोई रुचि नहीं थी, और स्वाभाविक रूप से मुझे उनसे डर भी लगता था। मुझे उन चीजों से सामना करने में डर लग रहा था जिनका सम्बन्ध उन लोगों से था जो अब दुनिया में नहीं थे, उन चीजो को अलमारियों में तथा डिब्बों में छिपा कर रख दिया गया था और वे व्यर्थ ही प्रतीक्षा कर रही थीं कि कोई उन्हें यथास्थान पुनः सजा देगा; और जो मात्र इस कारण ही ठीक-ठाक बनी रहीं क्योंकि वे निजींव वस्तुएँ थीं।

पर धीरे-धीरे सब कुछ पुनः सामान्य हो गया। डबल रोटी फिर से हल्के रंग की मिलने लगी, आप बिना किसी खतरे के बिस्तर पर सो सकते थे, एक कमरा जिसके बाहर आपको रोज देखने की आदत पड़ गई थी। और एक दिन मुझे लगा कि मेरा मन अपनी उन सभी वस्तुओं के लिए लालायित हो गया जिन्हें उस घर में होना चाहिए था। मैं उन्हें देखना चाहती थी, उन्हें छूना तथा याद करना चाहती थी।

मिसेज डोर्लिंग के घर पर मेरी पहली कोशिश तो निष्फल रही थी, उसके बाद मैंने दोबारा कोशिश करने का निर्णय किया। इस बार एक 15 वर्षीय लड़की ने दरवाजा खोला। मैंने पूछा क्या माँ घर पर है।
‘नहीं, वह बोली, ‘मेरी माँ तो किसी काम से गई हुई है।’
‘कोई बात नहीं,’ मैंने कहा, ‘मैं उनकी प्रतीक्षा कर लूँगी।’

The Address Class 11 Hindi Explanation – Para-6



I followed………………………Thank you’.

मैं लड़की के पीछे-पीछे गलियारे में चल दी। एक पुराने ढंग का शमादान दर्पण के बगल में लटका था। हमने इसे कभी इस्तेमाल नहीं किया था क्योंकि वह एकल शमादान से कहीं अधिक भारी-भरकम था।

‘क्या आप बैठेंगी नहीं?’ लड़की ने पूछा। उसने बैठक का दरवाजा खोल दिया और मैं अन्दर उससे आगे बढ़ गई। मैं ठहर गई, भयभीत हो गई। मैं ऐसे कमरे में थी जिससे मैं परिचित थी तथा जिसकी जानकारी मुझे न थी। मैंने स्वयं को उन वस्तुओं के बीच पाया जिन्हें मैं दोबारा देखना चाहती थी पर इस विचित्र माहौल में उन्हें देखकर मैं व्यथित हो गई अथवा मैं इस बात से दुखी हुई कि वे अव्यवस्थित तरीके से रखी थीं, फर्नीचर गंदा था, कमरे में उमसदार गंध आ रही थी। मैं ठीक से तो नहीं जानती, पर मेरा साहस नहीं हो रहा था कि कमरे के चारों ओर दृष्टि दौड़ाऊँ। उस लड़की ने एक कुर्सी खिसकाई। मैं बैठ गई और मैंने ऊनी मेजपोश पर दृष्टि डाली। मैंने उसे रगड़ा, मेरी अंगुलियाँ उसे रगड़ने के कारण गर्म हो गई। मैंने उस पर बने नमूने की लकीरों पर नजर दौड़ाई। उसके किनारे पर कहीं जलने का एक छेद या दाग होना चाहिए जिसे कभी भी भरा नहीं गया था।

‘मेरी माँ शीघ्र ही आ जाएगी,’ लड़की बोली। ‘मैंने उनके लिए चाय बना दी है। आप चाय लेंगी न? ‘धन्यवाद।’

The Address Class 11 Hindi Explanation – Para-7



I looked………………………for example.

मैंने दृष्टि ऊपर उठाई। लड़की ने चाय के प्याले मेज पर रख दिए थे। उसकी पीठ भी चौड़ी थी, जैसी उसकी माँ की थी। उसने चाय एक सफेद केतली से प्यालों में उड़ेली। उसने एक डिब्बा खोला तथा कुछ चम्मच बाहर निकाले।
‘यह डिब्बा तो बहुत अच्छा है।’ मैंने स्वयं अपनी आवाज सुनी। आवाज विचित्र थी, मानो इस कमरे में हर आवाज भिन्न थी।

‘ओह, तो आपको इनके बारे में जानकारी है?’ वह मुड़कर मेरी चाय ले आई वह हँस दी। ‘मेरी माँ कहती है ये प्राचीन कला वस्तुएँ हैं। हमारे पास ऐसी तमाम वस्तुएँ हैं।’ उसने कमरे में चारों ओर इशारा किया। ‘स्वयं देख लीजिए।’

मुझे उसके हाथ के इशारों का अनुसरण करने की जरूरत नहीं थी। जिन चीजों को वह दिखाना चाहती थी मैं उन्हें जानती थी। मैंने चाय की मेज के ऊपर टँगे चित्र को देखा। जब मैं बच्ची थी, तो सदा ही जस्ते की प्लेट पर रखे सेब को खाने की कल्पना किया करती थी।

‘हम इसका उपयोग हर चीज रखने के लिए करते हैं,’ उसने बताया। ‘एक बार तो हमने दीवार पर लटकी प्लेटों पर खाना भी खाया था। मुझे इसकी उत्कृष्ट इच्छा थी। पर मुझे तो कोई विशेषता नहीं दिखी।’

मैंने मेजपोश पर बना जलने का चिह्न खोज लिया था। लड़की ने मेरी ओर खोजक दृष्टि से देखा।
मैंने कहा, ‘हाँ, ‘घर की इन सभी प्यारी वस्तुओं को तुम इतनी छूती रहती हो कि तुम उन्हें शायद ही और अधिक देख पाओगी। तुम केवल तभी ध्यान देती हो, जब कोई वस्तु खो जाती है, जैसे कि इसके कारण हैं- इसे मरम्मत करवानी है या तुमने उसे उधार दिया है।’

The Address Class 11 Hindi Explanation – Para-8



Again I………………………my train’.

पुनः मुझे अपनी ही आवाज का अस्वाभाविक स्वर सुनाई दिया और मैं बोली, ‘मुझे याद है जब मेरी माँ ने मुझे एक बार बोला था कि क्या मैं चाँदी के बर्तनों को पॉलिश करने में मदद करूँगी। यह बात बहुत पुराने समय की है और मैं शायद उस दिन घर पर बैठी बोर हो रही थी अथवा शायद अस्वस्थ होने के कारण मुझे घर पर रुकना पड़ा था, चूंकि उसने मुझे पहले कभी ऐसे काम करने को नहीं कहा था। मैंने उससे पूछा कि चाँदी से आपका क्या तात्पर्य है, और उसने उत्तर दिया था, आश्चर्यपूर्वक, चम्मच, काँटे, चाकू आदि। और यह मेरे लिए नयी बात थी। मैं नहीं जानती थी कि चाकू, चम्मच आदि जिनसे हम प्रतिदिन अपना भोजन करते थे वे चाँदी के थे।



लड़की पुनः हँस दी थी।
‘मैं शर्त लगा सकती हूँ कि आपको इन चीजों के बारे में नहीं पता होगा।’ मैंने उसकी ओर गौर से देखा।
‘हम किन चीजों का इस्तेमाल डिनर मेज पर करते है?’ उसने पूछा।
‘तो क्या तुम जानती हो?’

वह संकोच में पड़ गई। वह बगल की अलमारी तक गई तथा एक दराज खोलने की कोशिश की। ‘मैं देखती हूँ- वह यहाँ है।’
मैं उछलकर खड़ी हो गई। ‘मैं गाड़ी के समय को भूल गई थी। मुझे तो गाड़ी पकड़नी जरूरी थी।’

The Address Class 11 Hindi Explanation – Para-9



She had………………………easiest.

उसका हाथ दराज पर था। ‘क्या आप मेरी माँ से मिलने के लिए प्रतीक्षा नहीं करेंगी?’
‘नहीं, मुझे जाना जरूरी है।’ मैं दरवाजे की ओर चल दी। लड़की ने दराज खोल ली थी।
‘मैं अपना रास्ता स्वयं खोज लूँगी।’ जैसे मैं गलियारे में चली, मुझे चम्मचों तथा काँटों की खनखनाहट सुनाई दी।

सड़क के कोने पर मैंने वहाँ लगी नाम पट्टिका देखी। उस पर लिखा था ‘माकोंनी स्ट्रीट’। मैं 46 नं. वाले घर में थी। पता सही था। पर अब मैं उस पते को याद नहीं रखना चाहती थी। मैं वहाँ अब वापस कभी नहीं जाऊँगी क्योंकि जो चीजें आपके पूर्व काल के परिचित जीवन से जुड़ी हों, वे बेमानी हो जाती हैं जब आप उनसे कट गए हों और पुनः उन्हें अजनबी माहौल में देखें। और मैं उन चीजों का करूंगी भी क्या जबकि मेरा एक छोटा-सा किराए का कमरा है जहाँ ब्लैकआउट समय के काले कागजों के टुकड़े अभी भी खिड़की पर लटके थे तथा मुट्ठी भर छुरे, काँटे आदि पतली मेज की दराज में रखे थे?

मैंने उस पते को भूल जाने का दृढ़ निश्चय कर लिया। जिन तमाम चीजों को भूलना मेरे लिए मजबूरी थी, उनमें इस पते को भुला देना सर्वाधिक आसान था।