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The Adventure Class 11 Hindi Explanation

 

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-1



The Jijamata………………………checking permits.

जीजामाता एक्सप्रेस गाड़ी पुणे-बम्बई मार्ग पर दक्कीन क्वीन की अपेक्षा कुछ अधिक तीव्र गति से जा रही थी। पुणे के बाहर कोई औद्योगिक शहर नहीं थे। अगला पड़ाव लोनावाला 40 मिनट में आ गया। उसके बाद घाट का खण्ड आया जो वैसा ही था जैसे उसे जानता था। गाड़ी करजात में थोड़ी देर रुकी और फिर कल्याण में से दहाड़ती हुई निकल गई।

इसी बीच प्रोफेसर गायतोंडे के तेजी से भागते मन ने बम्बई में काम-काज की योजना बना ली थी। वास्तव में एक इतिहासकार के रूप में उसे लगा कि उसे यह विचार पहले ही आ जाना चाहिए था। वह किसी बड़े पुस्तकालय में जाएगा और वहाँ इतिहास की पुस्तकों के पृष्ठ उलट-पलट कर देखेगा। यही ठीक ढंग था यह जानने का कि वर्तमान स्थिति कैसे आई थी। उसने यह भी सोचा कि वह अंतत: पुणे वापस आकर राजेन्द्र देशपाण्डे से लम्बी बातचीत करेगा, जो उसे अवश्य समझा देगा कि यह कैसे हुआ था।

अर्थात्‌, यह मानकर कि राजेन्द्र देशपाण्डे नामक व्यक्ति अभी इस संसार में जीवित है। लम्बी सुरंग के पार गाड़ी रुक गई। यह छोटा स्टेशन था जिसका नाम सरहद था। एक एंग्लो-इण्डियन वर्दी पहने गाड़ी में अनुमति पत्रों की जाँच करता हुआ घूम गया।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-2



“This is………………………British officers”.

“यहाँ से ब्रिटिश राज शुरू होता है। मेरे विचार में आप पहली बार आ रहे है?” खान साहिब ने पूछा।“
‘हाँ।’ ”उत्तर वास्तव में सही था। गंगाधरपंत इस बम्बई में पहले कभी नहीं आया था। उसने अनुमान लगाकर प्रश्न पूछा, “और खान साहिब आप पेशावर कैसे जाएँगे?”
“यह गाड़ी विक्टोरिया टरमिनस जाती है। मैं आज रात सैन्ट्रल से फ्रन्टिअर मेल ले लूँगा।”
“वह कितनी दूर तक जाती हैं? किस रास्ते से?”
“बम्बई से दिल्‍ली, फिर लाहौर, और फिर पेशावर। लम्बी यात्रा है। मैं परसों तक पेशावर पहुँचूँगा।”

उसके बाद खान साहिब अपने व्यापार के विषय में बहुत कुछ बताने लगे व गंगाधरपन्त ध्यान से सुनता रहा। क्योंकि उसे उस भारत के रहने-सहने का स्वाद पता चला जो इतना अलग भारत था। अब गाड़ी शहर के बाहरी भाग के रेल यातायात में से जा रही थी। नीले डिब्बों पर एक तरफ GBMR लिखा था।

“ग्रेटर बम्बई मेट्रोपोलिटन रेलवे”, खान साहिब ने स्पष्ट किया। “देखते हो, प्रत्येक डिब्बे पर छोटा-सा यूनियन जैक छपा है। यह याद दिलाता है कि हम ब्रिटिश सीमाक्षेत्र में है।”

दादर से परे गाड़ी धीमी होने लगी और अपने गन्तव्य स्थान, विक्टोरिया टरमिनस पर रुकी। स्टेशन बहुत साफ-सुथरा था। स्टाफ में अधिकांश एंग्लो-इण्डियन व पारसी थे, और साथ में कुछ मुट्ठी भर अंग्रेज अधिकारी।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-3



As he………………………works here?”.

स्टेशन से निकलकर गंगाधरपन्त एक प्रभावशाली भवन के सामने आया। जो नहीं जानते थे कि यह प्रमुख स्थान क्या है, उन्हें उस पर लिखे अक्षर बता रहे थे: ईस्ट इण्डिया कम्पनी का, ईस्ट इण्डिया मुख्यालय।

यद्यपि वह किसी चौंकाने वाली बातों के लिए तैयार नहीं था फिर भी प्रोफेसर गायतोंडे जैसी अपेक्षा नहीं थी। ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1857 की घटनाओं के तुरन्त बाद समाप्त हो गई थी। कम-से-कम इतिहास की पुस्तकों में तो ऐसा ही लिखा है। अभी तक यह न केवल जीवित था बल्कि फलता-फूलता था, इसलिए इतिहास ने 1857 से पहले एक अलग मोड़ ले लिया था। यह कब और कैसे हुआ होगा। उसे इसका पता लगाना था।

जब वह उस सड़क पर जा रहा था जिसका नाम हार्नबी रोड था, उसने वहाँ अलग प्रकार की दुकानें व कार्यालयों के भवन देखे। उसकी जगह कोई हैन्डलूम हाऊस भवन नहीं था। इसके स्थान पर वहाँ जूते तथा वूलवर्थ के डिपार्टमेन्टल स्टोर थे; लाइड्ज, बार्कलेज व अन्य ब्रिटिश बैंकों के प्रभावशाली भवन थे; जो इंग्लैंड के किसी शहर की सड़क पर जैसे दिखाई देते थे।

वह दायीं ओर होम स्ट्रीट में मुड़ा और फोर्बिस भवन में गया।
“मैं मि. विनय गायतोंडे से मिलना चाहता हूँ”, उसने अंग्रेज स्वागतकर्त्ती महिला से कहा।

उसने टेलीफोन की सूची, स्टाफ की सूची और फिर फर्म की सभी शाखाओं में काम करने वाले कर्मचारियों की सूची देखी। उसने सिर हिलाया और कहा, “मुझे उस नाम का कोई व्यक्ति यहाँ या अन्य किसी शाखा में काम करने वाले कर्मचारियों की सूची में नहीं मिला। क्या आप पक्का जानते है कि वह यहाँ काम करता है?”

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-4



This was………………………last volume.

यह आघात अनापेक्षित नहीं था। यदि वह स्वयं इस संसार में मर चुका था, तो क्या गारन्टी थी कि उसका पुत्र जीवित होगा? वास्तव में हो सकता है कि वह पैदा ही न हुआ हो!

उसने लड़की को विनम्रता से धन्यवाद दिया और बाहर आ गया। ठहरने के स्थान के बारे में चिन्ता न करना उसकी विशिष्टता थी। उसकी मुख्य चिन्ता तो यह थी कि इतिहास की पहेली को सुलझाने के लिए एशिएटिक सोसाइटी के पुस्तकालय में जाया जाए। जल्दी से रेस्टोरेन्ट में भोजन करके वह सीधा टाऊन हाल पहुँचा।

उसने चैन की सांस ली कि टाऊन हाल वहीं था और पुस्तकालय भी उसी में था। वह वाचनालय में गया और इतिहास की पुस्तकों की सूची मंगाई जिसमें उसकी अपनी लिखी हुई पुस्तकें भी सम्मिलित थी।

उसकी पाँच पुस्तकें उसकी मेज पर आ गई। उसने शुरू से आरम्भ किया। पहली पुस्तक अशोक काल तक की थी, दूसरी समुन्द्रगुप्त तक, तीसरी पुस्तक मोहम्मद गौरी तक और चौथी औरंगजेब की मृत्यु तक। इस काल तक का इतिहास वैसा था जैसा उसे पता था परिवर्तन स्पष्टत: अन्तिम पुस्तक में था।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-5



Reading volume………………………expansionist programme.

पांचवीं पुस्तक को दोनों ओर से अन्दर की ओर पढ़ते-पढ़ते, गंगाधरपन्त बिल्कुल उस स्थान पर आ गया जहाँ पर इतिहास ने अलग मोड़ लिया था।

पुस्तक के उस पृष्ठ पर पानीपत की लड़ाई का वर्णन था और उसमें लिखा था कि मराठों ने वह लड़ाई अच्छे तरीके से जीत ली थी। अब्दाली पूर्णत: पराजित हो गया था और उसे विजयी मराठा सेना ने जिसका नेतृत्व सदाशिव राव भाऊ और उसका भतीजा युवक विश्वासराव कर रहे थे, वापस काबुल खदेड़ दिया था।

पुस्तक में लड़ाई के पग-पग का वर्णन नहीं था। किन्तु उसमें भारत में शक्ति संघर्ष का बड़े परिश्रम से विवरण दिया हुआ था। गंगाधरपन्त ने उस विवरण को बहुत उत्सुकता से पढ़ा। लिखने की शैली नि:सन्देह उसी की थी। फिर भी वह उस वर्णन को पहली बार पढ़ रहा था।

लड़ाई में मराठा की विजय से न केवल उनके मनोबल को बढ़ावा मिला बल्कि उत्तरी भारत में उनकी उच्चतम सत्ता स्थापित हो गई। ईस्ट इण्डिया कम्पनी जो इसे किनारे पर खड़े इस प्रगति को देख रही थी, उन्हें सन्देश मिल गया। उन्होंने अपनी विस्तार की योजना को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-6



For the………………………central parliament.

पेशवा के लिए इसका तुरन्त परिणाम यह हुआ कि भाऊसाहब और विश्वासराव का प्रभाव बढ़ गया, जो बहुत ठाठ-बाठ के साथ सन्‌ 1780 में अपने पिता का उत्तराधिकारी बना। परेशानी पैदा करने वाले दादासाहब को पीछे हटना पड़ा और अन्त में उसने राज्य की राजनीति से सन्यास ले लिया।

ईस्ट इण्डिया कम्पनी को नए मराठा शासक, विश्वासराव को अपनी बराबरी का व्यक्ति पाकर बहुत व्याकुलता हुई। वह और उसके भाई माधवराव में राजनीतिक तीक्ष्णता तथा वीरता का मिलाप था और उन्होंने सोचे-समझे तरीके से पूरे भारत पर अपना प्रभाव जमा लिया था, और कम्पनी का प्रभाव अन्य यूरोपियन प्रतिस्पर्घियों, पुर्तगाली और फ्रांसिसियों की तरह केवल बम्बई, कलकत्ता तथा मद्रास के आस-पास तक सिमट कर रह गया था।

राजनीतिक कारणों से पेशवाओं ने दिल्‍ली में मुगल शासन को जिन्दा रखा। उन्‍नीसवीं शताब्दी के पुणे के ये असली शासक इतने स्याने थे कि उन्होंने यूरोप में शिल्प युग के शुरू होने के महत्त्व को समझा। उन्होंने अपने विज्ञान व शिल्प के केन्द्र स्थापित किए। यहाँ, ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर देखा। उन्होंने सहायता और विशेषज्ञ देने का प्रस्ताव रखा। स्थानीय केन्द्रों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया।

पश्चिम से प्रेरित होकर बीसवीं शताब्दी में और अधिक परिवर्तन हुए। भारत लोकतन्त्र की ओर अग्रसर हुआ। उस समय तक पेशवा का उद्यम समाप्त हो चुका था और धीरे-धीरे निर्वाचित तन्त्रों ने उनका स्थान ले लिया था। दिल्‍ली की सल्तनत इस परिवर्तन में भी बनी रही। मुख्यत: इसलिए कि उनका कोई वास्तविक प्रभाव नहीं था। दिल्‍ली के सम्राट के पास नाम मात्र का शासन था, जो केन्द्रीय संसद द्वारा सिफारिशों पर अनुमति की मोहर लगा देता था।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-7



As he………………………his heart.

पढ़ते समय, गंगाधरपन्त ने जो भारत देखा था उसकी प्रशंसा करने लगा। यह वह देश था जो गोरो का दास नहीं बना था। उसने अपने पैरों पर खड़े होना व आत्म-सम्मान का मूल्य समझ लिया था। सशक्त होते हुए व केवल व्यापारिक कारणों से उसने अंग्रेजों की बम्बई इस उप महाद्वीप में एक मात्र चौकी रूप में रखने की अनुमति दे दी थी। सन्‌ 1908 की संधि के अनुसार यह पट्टा वर्ष 2001 में समाप्त होना था।

गंगाधरपन्त जिस देश से परिचित था तथा जो कुछ वह अपने चारों ओर देख रहा था, वह उनकी तुलना किए बिना रह न सका। लेकिन, साथ ही उसे प्रतीत हुआ कि छानबीन अधूरी थी। मराठों ने युद्ध कैसे जीता? इसका उत्तर जानने के लिए उसे युद्ध का वर्णन देखना जरूरी था। उसने अपने सामने पड़ी पत्रिकाओं और पुस्तकों को पढ़ा। अन्त में उन पुस्तकों में उसे एक पुस्तक मिल गई जिसमें संकेत था। यह भाऊसाहेबांची बखर की पुस्तक थी।

यद्यपि वह बखर पर ऐतिहासिक प्रमाण के लिए कभी भी विश्वास नहीं करता था। लेकिन पढ़ने में वे मनोरंजक होते थे। कभी-कभी उसके सुवर्णित किन्तु तोड़े-मरोड़े वर्णन को पढ़ने में मग्न उसे कोई सत्य का अंश मिल जाता था। उसे अब सत्य का एक अंश तीन पंक्तियों वाले वर्णन में मिल गया कि विश्वासराव कैसे मरते-मरते बचा। और फिर विश्वासराव ने अपना घोड़ा उस घमासान युद्ध की ओर मोड़ा जहाँ सर्वोत्तम सैनिक लड़ रहे थे, व उसने उन पर आक्रमण कर दिया। और ईश्वर दयालु थे। एक गोली उसके कान के पास से गुजरी। एक तिल भर का यदि अन्तर नहीं होता तो उसकी मृत्यु हो जाती।

आठ बजे पुस्तकालय अध्यक्ष ने प्रोफेसर को विनम्रता से याद दिलाया कि पुस्तकालय के बन्द होने का समय हो गया था। गंगाधरपंत अपने विचारों से निकला। चारों ओर देखा तो उसे पता लगा कि उस शानदार हॉल में वह अकेला ही पाठक शेष था।
“क्षमा करना, सर, क्या यह पुस्तक कल मेरे प्रयोग के लिए यहाँ रख देंगे? वैसे आप खोलते कब है?”
“आठ बजे, सर” पुस्तकालय का अध्यक्ष मुस्कराया। यहाँ ऐसा पाठक और अनुसंधानकर्ता उसके सामने था। जैसों का वह प्रशंसक था।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-8



As the………………………you know?”

प्रोफेसर ने मेज पर से खड़े होते समय कुछ हस्तलेख अपनी दायीं ओर की जेब मे ठूंस लिए। अनजाने में उसने बखर भी अपनी दायीं जेब में ठूंस लिया।

उसे ठहरने के लिए एक गेस्ट हाऊस मिल गया और उसने सस्ता साधारण भोजन खाया। फिर वह टहलने के लिए आजाद मैदान की ओर चल पड़ा।

उसने मैदान में एक भीड़ को एक पंडाल की ओर जाते हुए देखा। अच्छा कोई भाषण शुरू होने वाला था। अपनी आदत से मजबूर, प्रोफेसर गायतोंडे पंडाल की ओर चल दिया। भाषण जारी था यद्यपि लोग आ जा रहे थे। किन्तु गायतोंडे श्रोताओं को नहीं देख रहा था। वह सम्मोहित होकर मंच की ओर देख रहा था। वहाँ एक मेज व एक कुर्सी थी, परन्तु कुर्सी खाली थी।

सभापति की कुर्सी खाली थी! यह देखकर वह उत्तेजित हुआ। जैसे लोहे का टुकड़ा चुम्बक से आकर्षित होता है, वह तीव्रता से कुर्सी की ओर बढ़ा।
वक्ता वाक्य के बीच में ही रुक गया। वह इतना आश्चर्यचकित था कि बोल न सका। परन्तु श्रोता बोल उठे।
“कुर्सी खाली करो!”
“इस भाषण श्रृंखला का कोई सभापति नहीं है”
“मि० मंच से चले जाओ!”
“कुर्सी तो प्रतीक मात्र है। तुम नहीं जानते?”

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-9



What nonsense………………………of a book.

क्या निरर्थक बात है! क्या कभी सार्वजनिक भाषण किसी मान्य व्यक्ति के सभापतित्व के होता है? प्रोफेसर गायतोंडे ने माईक पर जाकर अपने विचारों की भड़ास निकाली। “महिलाओं व सज्जनों, बिना सभापति के भाषण ऐसा ही है जैसे शेक्सपिअर का हेमलेट नाटक डेन्मार्क के राजकुमार के बिना। मैं आपसे कहता हूँ….”
परन्तु श्रोतागण सुनने को बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। “हमें कुछ न बताओ। हम सभापति की टिप्पणियों, धन्यवाद प्रस्तावों व लम्बी भूमिकाओं से ऊब चुके है।“
“हम तो केवल वक्ता को ही सुनना चाहते हैं।”
“हमने पुरानी परम्परा कभी की समाप्त कर दी है।”
“कृपया मंच खाली करो….”

परन्तु गंगाधरपन्त को 999 सभाओं में बोलने का अनुभव था और उसने पुणे में बहुत प्रतिकूल श्रोताओं का सामना किया था। वह बोलता गया।

शीघ्र ही वह टमाटरों, अंडो व अन्य वस्तुओं की बौछार का निशाना बन गया। लेकिन उसने इस अपमान को वीरता के साथ सुधारने का प्रयास किया। अन्त में श्रोताओं की भीड़ ने उसे शारीरिक रूप से हटाने के लिए मंच पर धावा बोल दिया और भीड़ में गंगाधरपंत कहीं भी दिखाई नहीं दिया।

“मुझे आपको इतना ही बताना था, राजेन्द्र। बस मुझे तो इतना ही पता हैं कि मैं सुबह आजाद मैदान में पड़ा था। परन्तु मैं परिचित संसार में वापस आ गया था। परन्तु मैंने वे दो दिन कहाँ व्यतीत किए जब मैं अनुपस्थित था?”
राजेन्द्र वृत्तांत सुनकर भौंचक्का रह गया। उसे उत्तर देने में कुछ समय लगा।
“प्रोफेसर, ट्रक से टक्कर लगने से पहले आप क्या कर रहे थे?” राजेन्द्र ने पूछा।
“मैं केटास्ट्राफी सिद्धान्त के विषय में सोच रहा था और यह कि वह इतिहास पर कैसे लागू होती है।”
“ठीक! मैं भी यह समझता था।” राजेन्द्र मुस्कराया।

“ऐसे गर्व से न मुस्कराओ। यदि आप समझते है कि मेरा मस्तिष्क क्रीडा कर रहा था और मेरी कल्पना-शक्ति नियन्त्रण से बाहर हो गई थी, तो यह देखो।”
और प्रोफेसर गायतोंडे ने गर्व से महत्त्वपूर्ण प्रमाण प्रस्तुत किया। पुस्तक में से फटा हुआ एक पृष्ठ।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-10



Rajendra read………………………he talked.

राजेन्द्र ने छपे हुए पृष्ठ पर लेख पढ़ा और उसके चेहरे के भाव बदल गए। उसकी मुस्कराहट चली गई और उसके स्थान पर एक गम्भीर भाव आ गया। लग रहा था वह बहुत उत्तेजित था।
गंगाधरपन्त ने अपनी लाभदायक प्रस्थिति को स्पष्ट किया। “जब मैं पुस्तकालय से चला मैंने अनजाने में बखर अपनी जेब में खिसका ली थी। मुझे अपनी गलती का पता तब चला जब मैं अपने भोजन का बिल चुका रहा था। मेरा इरादा इसे अगले दिन वापस करने का था। परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि आजाद मैदान की अफरा-तफरी में पुस्तक खो गई। केवल यह पृष्ठ बचा। सौभाग्य से इस पृष्ठ पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव है।”

राजेन्द्र ने पृष्ठ को फिर पढ़ा। इसमें लिखा था कि विश्वासराव कैसे गोली लगने से बचा और कैसे मराठा सेना के द्वारा इसे अच्छा शकुन माने जाने पर घटना उनके पक्ष में बदल गई।
“अब इसे देखो।” गंगाधरपन्त ने भाऊसाहेबांची बखर की अपनी पुस्तक सम्बन्धित पृष्ठ पर खोली। वर्णन इस प्रकार था–
–और तब विश्वासराव ने अपना घोड़ा उस संकल युद्ध की ओर मोड़ा जहाँ सर्वोत्तम सैनिक लड़ रहे थे और उसने उन पर आक्रमण कर दिया। ईश्वर ने नाराजगी दिखाई। उसे गोली लग गई।

“प्रोफेसर गायतोंडे, आपने मुझे सोच विचार का अवसर दिया है। इस महत्त्वपूर्ण प्रमाण को देखने से पहले मैंने आपके अनुभव को केवल कल्पना ही समझा था। परन्तु तथ्य कल्पना से भी अधिक विचित्र हो सकते हैं, मैं अब ऐसा समझने लगा हूँ।
“तथ्य? तथ्य क्या है? मैं तो जानने के लिए छटपटा रहा हूँ।” प्रोफेसर गायतोंडे ने कहा।

राजेन्द्र ने उसे चुप रहने का इशारा किया और कमरे में घूमने लगा। स्पष्टत: वह भारी मानसिक दबाव में था। अन्त में वह मुड़ा और बोला, “प्रोफेसर गायतोंडे, मैं आपके अनुभव को आज के दो वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर तर्कसंगत बनाने का प्रयास करूँगा। मैं आपको मनवाने में सफल होता हूँ या नहीं, इसका निर्णय तो आप ही कर सकते हैं क्योंकि आप ही इस अद्भुत अनुभव से गुजरे है या ठीक कहा जाए तो केटास्ट्राफिक अनुभव में से।”
“आप कहते जाए, मैं पूरे ध्यान से सुन रहा हूँ।” प्रोफेसर गायतोंडे ने उत्तर दिया। राजेन्द्र कमरे में इधर-उधर घूमता रहा और बातें करता रहा।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-11



“You have………………………manifestations.

आपने उस सेमिनार में केटास्ट्राफी सिद्धान्त के विषय में बहुत कुछ सुना है। हम इसे पानीपत के युद्ध पर लागू करते है। खुले मैदान में आमने-सामने लड़े जाने वाले युद्ध इस सिद्धान्त के बहुत उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। मराठों की सेना अब्दाली की सेना का पानीपत में सामना कर रही थी। दोनों की सेनाओं में कोई अन्तर नहीं था। उनके शस्त्र भी समान थे। इसलिए बहुत कुछ नेतृत्व सेना के मनोबल पर निर्भर करता था। उस महत्त्वपूर्ण घड़ी में पेशवा का पुत्र व उत्तराधिकारी विश्वासराव का मरना निर्णायक सिद्ध हुआ। जैसा इतिहास बताता है, भाऊसाहेब उस मारकाट में घुस गया, और फिर उसका पता न चला। वह लड़ाई में मारा गया था, बच गया, इसका कुछ पता नहीं। परन्तु वह विशेष क्षण अपने नेता के मर जाने का आघात सेना के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण था। उसका मनोबल टूट गया व उनमें लड़ने की भावना नहीं रही। इसके बाद पूर्ण पराजय हुई।

“बिल्कुल, प्रोफेसर! और जो आपने मुझे फटे हुए पृष्ठ पर दिखाया है, वह युद्ध की वह घटना है जो तब हुई जब गोली विश्वासराव को न लगी। यह महत्त्वपूर्ण घटना दूसरी ओर चल पड़ी। और सेना पर भी इसका प्रभाव विपरीत हुआ। इससे उनका मनोबल बढ़ गया और इसी से पूरा अन्तर आया”, राजेन्द्र ने कहा।

“सम्भवत: ऐसा हो। इसी प्रकार के विचार वाटरलू के युद्ध के विषय में प्रकट किए जाते है कि नेपोलियन उसे जीत सकता था। परन्तु हम निराले संसार में रहते हैं जिसका इतिहास अनूठा है। यह धारणा ‘कि ऐसा हो सकता था’ अटकलबाजी के लिए तो ठीक है परन्तु वास्तविकता के लिए नहीं,” गंगाधरपन्त ने कहा।

“मैं इस प्रश्न पर आपसे सहमत नहीं हूँ। वास्तव में इसमें अपने दूसरे बिन्दु पर आता हूँ जो आपको विचित्र लगे। परन्तु मेरी बात पूरी सुनना,” राजेन्द्र ने कहा।
गंगाधरपन्त ने आशापूर्ण तरीके से सुना और राजेन्द्र कहने लगा। आपका वास्तविकता से क्या अभिप्राय हैं? हम इसे सीधे अपनी इन्द्रियों द्वारा अनुभव करते हैं या यन्त्रों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से। परन्तु क्या वहीं तक सीमित है जो हम देखते हैं? क्या यह अन्य तरीके से भी प्रकट होती है?

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-12



“That reality………………………Rajendra said.

वास्तविकता हो सकता है एक मात्र न हो। यह परमाणु तथा उसके संघटक कणों पर प्रयोग करके देखा गया है। जब इन तन्त्रों पर कार्य किया गया तो भौतिक शास्त्रियों ने आश्चर्यजनक खोज की। इन तन्त्रों के व्यवहार की निश्चित भविष्यवाणी नहीं की जा सकती यद्यपि हमें इन तन्त्रों पर लागू होने वाले सभी भौतिक नियमों की जानकारी भी हो।

“एक उदाहरण लें। मैं किसी स्त्रोत से कोई इलेक्ट्रान छोड़ता हूँ। यह कहाँ जाएगा? यदि मैं बन्दूक से किसी विशेष दिशा में गोली चलाता हूँ, तो मुझे पता है कि यह किसी आने वाले समय में कहाँ पहुँचेगी। परन्तु इलेक्ट्रान के विषय में मैं इस प्रकार निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकता। यह यहाँ, वहाँ, कहीं भी हो सकता है। मैं केवल अनुभव से कह सकता हूँ कि किसी निश्चित समय में किस निश्चित स्थान पर मिलने की क्या सम्भावना है।”
“क्वांटम सिद्धान्त में निश्चितता का अभाव!” यह बात मेरे जैसे अज्ञानी इतिहासकार को भी पता है,” प्रोफेसर गायतोंडे ने कहा।

“इसलिए, कल्पना करें विश्व की एक संसार में हलेक्ट्रान यहाँ है, अन्य में वहाँ है, व किसी और में किसी अलग स्थान पर है। जब देखने वाले को पता चल जाए कि वह कहाँ है तो हम जान जाते हैं कि वह किस संसार की बात कर रहा है। परन्तु फिर भी वे वैकल्पिक अलग-अलग संसार में विद्यमान है।” राजेन्द्र अपने विचारों को क्रमबद्ध करने के लिए रुका।
“किन्तु क्या इन दुनियाओं में कोई सम्पर्क है?” प्रोफेसर गायतोंडे ने पूछा।
“हाँ और ना! दोनों दुनियाओं की उदाहरण के लिए कल्पना करें। दोनों में इलेक्ट्रान परमाणु की नाभिक में चक्कर लगा रहा है…”
“जैसे ग्रह सूर्य का चक्कर लगाते हैं।” गंगाधरपन्त बीच में बोला।

“ऐसा नहीं। हमें ग्रहों की निश्चित गमन पथ का पता है। इलेक्ट्रान कई सीमित स्थितियों में घूम रहे हो सकते हैं। इन प्रस्थितियों का प्रयोग उस संसार को पहचानने में किया जा सकता है। पहली प्रस्थिति में इलेक्ट्रान भारी ऊर्जा की हालत में होते हैं। दूसरी प्रस्थिति में यह निम्न ऊर्जा की हालत में होता है। यह उच्च ऊर्जा से निम्न ऊर्जा में छलांग लगा सकता है व किरणों को स्पंदन भेजता है। इस प्रकार एक प्रस्थिति से दूसरी प्रस्थिति से धक्का देकर पहली प्रस्थिति में भेज सकता है। इस प्रकार के एक प्रस्थिति से दूसरी प्रस्थिति में परिवर्तन अति सूक्ष्म तन्त्रों में सामान्य बात है।”
“क्या हो यदि ऐसा दीर्घ तन्त्रों के स्तर पर हो जाए?” राजेन्द्र ने कहा।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-13



“I get………………………address.”

“मैं आपकी बात समझता हूँ। आप यह सुझा रहे हैं कि मैं एक संसार से दूसरे संसार में चला गया और फिर वापस आ गया?” गंगाधरपन्त ने पूछा।
“चाहे यह बात बहुत विलक्षण लगती हैं परन्तु केवल यही स्पष्टीकरण मैं दे सकता हूँ। मेरा सिद्धान्त यह है कि केटास्ट्राफिक प्रस्थितियाँ दुनिया को आगे बढ़ने के लिए पूर्णत: अलग विकल्प प्रस्तुत करती हैं। ऐसी प्रतीत होता है कि जहाँ तक वास्तविकता का सम्बन्ध है, सभी विकल्प व्यवहारिक है। किन्तु द्रष्टा एक समय में उनमें से केवल एक का ही अनुभव कर सकता है।”

“वह परिवर्तन करने से आपको दो संसारों का अनुभव हो गया यद्यपि एक समय में एक का। एक वह जिसमें आप अब रह रहे हैं और एक वह जिसमें आपने दो दिन व्यतीत किए। एक का इतिहास हम जानते हैं, दूसरे का इतिहास अलग है। इनका अलग होना या दो भागों में बँटना पानीपत की लड़ाई में हुआ। आपने न तो भूतकाल में और न ही भविष्य में यात्रा की। आप वर्तमान में ही रह रहे थे किन्तु अलग-अलग संसारों का अनुभव कर रहे थे। नि:सन्देह इसी परिणाम से भिन्न-भिन्न समय पर अलग-अलग संसार विभाजित हो रहे होंगे।”

राजेन्द्र के अपनी बात पूरी होने पर, गंगाधरपन्त ने वह प्रश्न पूछा जो उसे परेशान करने लगा था। “परन्तु मैंने परिवर्तन किया ही क्यों?”
“यदि मैं इसका उत्तर जानता तो मैं एक बड़ी समस्या सुलझा देता। दुर्भाग्यवश, विज्ञान में बहुत-से अनसुलझे प्रश्न हैं और यह उनमें से एक है। किन्तु मैं अनुमान लगाने से तो नहीं रुक सकता।”
राजेन्द्र ने मुस्कराकर आगे कहना शुरू किया, आपको परिवर्तन करने के लिए किसी मुठभेड़ की आवश्यकता होती है। सम्भवत: मुठभेड़ के समय आप केटास्ट्राफी सिद्धान्त के व युद्ध में उसकी भूमिका के विषय में सोच रहे होंगे। हो सकता हैं आप पानीपत के युद्ध के विषय में सोच रहे होंगे। हो सकता है कि आपके मस्तिष्क में न्यूरॉन्स ने इस परिवर्तन को उत्पन्न करने का कार्य किया।”

“अच्छा अनुमान है। मैं सोच रहा था कि यदि पानीपत की लड़ाई का परिणाम अन्य दिशा में होता तो इतिहास किस ओर जाता।” प्रोफेसर गायतोंडे ने कहा। “मेरे हजारवें सभापति पद से भाषण का विषय यही होना था।”

“अब केवल अटकले लगाने की अपेक्षा अपने वास्तविक जीवन के अनुभव का वर्णन करने की अच्छी स्थिति में है।” राजेन्द्र ने हँस कर कहा। लेकिन गंगाधरपन्त गम्भीर था।
“नहीं, राजेन्द्र मेरा हजारवां भाषण आजाद मैदान में हो गया था। जब मुझे अशिष्टतापूर्वक टोका गया था। नहीं, वह प्रोफेसर गायतोंडे ने जो अपने आसन की रक्षा करते हुए गायब हो गया था, अब अन्य किसी भी भाषण सभा का सभापतित्व करते न देखा जाएगा। मैंने पानीपत गोष्ठी के आयोजनकर्त्ताओं को अपने खेद से सूचित कर दिया है।”