Tuesday, April 9, 2024

The Address Class 11 Hindi Explanation

 

The Address Class 11 Hindi Explanation – Para-4



Meanwhile………………………remember that’.

इस बीच मैं स्टेशन पहुँच गई थी, रास्ते में मैंने किसी भी चीज पर कोई ध्यान नहीं दिया। मैं युद्ध के छिड़ने के बाद उन परिचित स्थानों पर पहली बार चल रही थी, पर मैं आवश्यकता से अधिक दूरी तय करने के मूड में नहीं थी। मैं उन सड़कों तथा घरों को देखकर अपने को दुखी नहीं करना चाहती, इन स्थानों से मेरी यादें जुड़ी थीं।

वापस गाड़ी में मैंने मिसेज डोर्लिंग की वही शक्ल देखी जैसी मैंने पहली बार मिलने पर देखी थी। जिस दिन मेरी माँ ने उसके बारे में बताया था, उसके बाद का वह दिन था। मैं जरा देर से सोकर उठी थी तथा सीढ़ियों से नीचे आने पर, मैंने पाया कि माँ किसी महिला को छोड़ने बाहर गई हैं। वह महिला चौड़ी पीठ या कमर वाली थी।

‘वह रही मेरी बेटी,’ माँ ने बताया। उसने मुझे इशारे से बुलाया।
महिला ने सर हिलाया, सूटकेस कोट रैंक के नीचे उठाया। वह एक भूरे रंग का कोट तथा आकृतिहीन हैट पहने थी।
‘क्या वह बहुत दूर रहती है?’ मैंने पूछा, जब मैंने महिला को भारी केस के साथ कठिनाईपूर्वक घर से बाहर निकलते देखा।
‘मार्कोनी स्ट्रीट में’ मेरी माँ ने बताया। ‘नम्बर-46 यह याद रखना।’

The Address Class 11 Hindi Explanation – Para-5



I had………………………for her’.

मैंने वह नम्बर याद रखा था। पर मैंने वहाँ जाने के लिए लम्बी प्रतीक्षा की। आजादी के बाद प्रारम्भिक दिनों में मेरी उन संग्रहीत चीजों में कोई रुचि नहीं थी, और स्वाभाविक रूप से मुझे उनसे डर भी लगता था। मुझे उन चीजों से सामना करने में डर लग रहा था जिनका सम्बन्ध उन लोगों से था जो अब दुनिया में नहीं थे, उन चीजो को अलमारियों में तथा डिब्बों में छिपा कर रख दिया गया था और वे व्यर्थ ही प्रतीक्षा कर रही थीं कि कोई उन्हें यथास्थान पुनः सजा देगा; और जो मात्र इस कारण ही ठीक-ठाक बनी रहीं क्योंकि वे निजींव वस्तुएँ थीं।

पर धीरे-धीरे सब कुछ पुनः सामान्य हो गया। डबल रोटी फिर से हल्के रंग की मिलने लगी, आप बिना किसी खतरे के बिस्तर पर सो सकते थे, एक कमरा जिसके बाहर आपको रोज देखने की आदत पड़ गई थी। और एक दिन मुझे लगा कि मेरा मन अपनी उन सभी वस्तुओं के लिए लालायित हो गया जिन्हें उस घर में होना चाहिए था। मैं उन्हें देखना चाहती थी, उन्हें छूना तथा याद करना चाहती थी।

मिसेज डोर्लिंग के घर पर मेरी पहली कोशिश तो निष्फल रही थी, उसके बाद मैंने दोबारा कोशिश करने का निर्णय किया। इस बार एक 15 वर्षीय लड़की ने दरवाजा खोला। मैंने पूछा क्या माँ घर पर है।
‘नहीं, वह बोली, ‘मेरी माँ तो किसी काम से गई हुई है।’
‘कोई बात नहीं,’ मैंने कहा, ‘मैं उनकी प्रतीक्षा कर लूँगी।’

The Address Class 11 Hindi Explanation – Para-6



I followed………………………Thank you’.

मैं लड़की के पीछे-पीछे गलियारे में चल दी। एक पुराने ढंग का शमादान दर्पण के बगल में लटका था। हमने इसे कभी इस्तेमाल नहीं किया था क्योंकि वह एकल शमादान से कहीं अधिक भारी-भरकम था।

‘क्या आप बैठेंगी नहीं?’ लड़की ने पूछा। उसने बैठक का दरवाजा खोल दिया और मैं अन्दर उससे आगे बढ़ गई। मैं ठहर गई, भयभीत हो गई। मैं ऐसे कमरे में थी जिससे मैं परिचित थी तथा जिसकी जानकारी मुझे न थी। मैंने स्वयं को उन वस्तुओं के बीच पाया जिन्हें मैं दोबारा देखना चाहती थी पर इस विचित्र माहौल में उन्हें देखकर मैं व्यथित हो गई अथवा मैं इस बात से दुखी हुई कि वे अव्यवस्थित तरीके से रखी थीं, फर्नीचर गंदा था, कमरे में उमसदार गंध आ रही थी। मैं ठीक से तो नहीं जानती, पर मेरा साहस नहीं हो रहा था कि कमरे के चारों ओर दृष्टि दौड़ाऊँ। उस लड़की ने एक कुर्सी खिसकाई। मैं बैठ गई और मैंने ऊनी मेजपोश पर दृष्टि डाली। मैंने उसे रगड़ा, मेरी अंगुलियाँ उसे रगड़ने के कारण गर्म हो गई। मैंने उस पर बने नमूने की लकीरों पर नजर दौड़ाई। उसके किनारे पर कहीं जलने का एक छेद या दाग होना चाहिए जिसे कभी भी भरा नहीं गया था।

‘मेरी माँ शीघ्र ही आ जाएगी,’ लड़की बोली। ‘मैंने उनके लिए चाय बना दी है। आप चाय लेंगी न? ‘धन्यवाद।’

The Address Class 11 Hindi Explanation – Para-7



I looked………………………for example.

मैंने दृष्टि ऊपर उठाई। लड़की ने चाय के प्याले मेज पर रख दिए थे। उसकी पीठ भी चौड़ी थी, जैसी उसकी माँ की थी। उसने चाय एक सफेद केतली से प्यालों में उड़ेली। उसने एक डिब्बा खोला तथा कुछ चम्मच बाहर निकाले।
‘यह डिब्बा तो बहुत अच्छा है।’ मैंने स्वयं अपनी आवाज सुनी। आवाज विचित्र थी, मानो इस कमरे में हर आवाज भिन्न थी।

‘ओह, तो आपको इनके बारे में जानकारी है?’ वह मुड़कर मेरी चाय ले आई वह हँस दी। ‘मेरी माँ कहती है ये प्राचीन कला वस्तुएँ हैं। हमारे पास ऐसी तमाम वस्तुएँ हैं।’ उसने कमरे में चारों ओर इशारा किया। ‘स्वयं देख लीजिए।’

मुझे उसके हाथ के इशारों का अनुसरण करने की जरूरत नहीं थी। जिन चीजों को वह दिखाना चाहती थी मैं उन्हें जानती थी। मैंने चाय की मेज के ऊपर टँगे चित्र को देखा। जब मैं बच्ची थी, तो सदा ही जस्ते की प्लेट पर रखे सेब को खाने की कल्पना किया करती थी।

‘हम इसका उपयोग हर चीज रखने के लिए करते हैं,’ उसने बताया। ‘एक बार तो हमने दीवार पर लटकी प्लेटों पर खाना भी खाया था। मुझे इसकी उत्कृष्ट इच्छा थी। पर मुझे तो कोई विशेषता नहीं दिखी।’

मैंने मेजपोश पर बना जलने का चिह्न खोज लिया था। लड़की ने मेरी ओर खोजक दृष्टि से देखा।
मैंने कहा, ‘हाँ, ‘घर की इन सभी प्यारी वस्तुओं को तुम इतनी छूती रहती हो कि तुम उन्हें शायद ही और अधिक देख पाओगी। तुम केवल तभी ध्यान देती हो, जब कोई वस्तु खो जाती है, जैसे कि इसके कारण हैं- इसे मरम्मत करवानी है या तुमने उसे उधार दिया है।’

The Address Class 11 Hindi Explanation – Para-8



Again I………………………my train’.

पुनः मुझे अपनी ही आवाज का अस्वाभाविक स्वर सुनाई दिया और मैं बोली, ‘मुझे याद है जब मेरी माँ ने मुझे एक बार बोला था कि क्या मैं चाँदी के बर्तनों को पॉलिश करने में मदद करूँगी। यह बात बहुत पुराने समय की है और मैं शायद उस दिन घर पर बैठी बोर हो रही थी अथवा शायद अस्वस्थ होने के कारण मुझे घर पर रुकना पड़ा था, चूंकि उसने मुझे पहले कभी ऐसे काम करने को नहीं कहा था। मैंने उससे पूछा कि चाँदी से आपका क्या तात्पर्य है, और उसने उत्तर दिया था, आश्चर्यपूर्वक, चम्मच, काँटे, चाकू आदि। और यह मेरे लिए नयी बात थी। मैं नहीं जानती थी कि चाकू, चम्मच आदि जिनसे हम प्रतिदिन अपना भोजन करते थे वे चाँदी के थे।



लड़की पुनः हँस दी थी।
‘मैं शर्त लगा सकती हूँ कि आपको इन चीजों के बारे में नहीं पता होगा।’ मैंने उसकी ओर गौर से देखा।
‘हम किन चीजों का इस्तेमाल डिनर मेज पर करते है?’ उसने पूछा।
‘तो क्या तुम जानती हो?’

वह संकोच में पड़ गई। वह बगल की अलमारी तक गई तथा एक दराज खोलने की कोशिश की। ‘मैं देखती हूँ- वह यहाँ है।’
मैं उछलकर खड़ी हो गई। ‘मैं गाड़ी के समय को भूल गई थी। मुझे तो गाड़ी पकड़नी जरूरी थी।’

The Address Class 11 Hindi Explanation – Para-9



She had………………………easiest.

उसका हाथ दराज पर था। ‘क्या आप मेरी माँ से मिलने के लिए प्रतीक्षा नहीं करेंगी?’
‘नहीं, मुझे जाना जरूरी है।’ मैं दरवाजे की ओर चल दी। लड़की ने दराज खोल ली थी।
‘मैं अपना रास्ता स्वयं खोज लूँगी।’ जैसे मैं गलियारे में चली, मुझे चम्मचों तथा काँटों की खनखनाहट सुनाई दी।

सड़क के कोने पर मैंने वहाँ लगी नाम पट्टिका देखी। उस पर लिखा था ‘माकोंनी स्ट्रीट’। मैं 46 नं. वाले घर में थी। पता सही था। पर अब मैं उस पते को याद नहीं रखना चाहती थी। मैं वहाँ अब वापस कभी नहीं जाऊँगी क्योंकि जो चीजें आपके पूर्व काल के परिचित जीवन से जुड़ी हों, वे बेमानी हो जाती हैं जब आप उनसे कट गए हों और पुनः उन्हें अजनबी माहौल में देखें। और मैं उन चीजों का करूंगी भी क्या जबकि मेरा एक छोटा-सा किराए का कमरा है जहाँ ब्लैकआउट समय के काले कागजों के टुकड़े अभी भी खिड़की पर लटके थे तथा मुट्ठी भर छुरे, काँटे आदि पतली मेज की दराज में रखे थे?

मैंने उस पते को भूल जाने का दृढ़ निश्चय कर लिया। जिन तमाम चीजों को भूलना मेरे लिए मजबूरी थी, उनमें इस पते को भुला देना सर्वाधिक आसान था।

The Summer of the Beautiful White Horse Class 11 Hindi Explanation

 

The Summer of the Beautiful White Horse Class 11 Hindi Explanation – Para-1



One day………………………to ride.

एक दिन बहुत पुराने समय की बात है, जब मैं 9 वर्ष का था और संसार हर प्रकार की भव्यता से भरपूर था और जीवन अभी भी एक सुखद रहस्यमय सपना था, मेरा चचेरा भाई मुराद जिसे सभी परिचित लोग सनकी या पागल कहा करते थे, केवल में ही नहीं कहता, मेरे घर प्रातः चार बजे आया, उसने मुझे जगाया, मेरे कमरे की खिड़की पर उसने थपकी दी।

‘अरम’ वह बोला।
मैं बिस्तर से उछल कर खड़ा हो गया तथा खिड़की से बाहर मैंने देखा।
मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ।
अभी प्रातः नहीं हुई थी, पर ग्रीष्म ऋतु थी और भोर कुछ ही मिनटों में होने वाली थी, संसार के कोने में इतना पर्याप्त प्रकाश था कि मैं महसूस कर लूं कि में सपना नहीं देख रहा हूँ।
मेरा भाई मुराद एक सुन्दर सफेद घोड़े पर सवार था। मैंने खिड़की के बाहर सर निकाला और आँखे मली।
हाँ, उसने आर्मीनिया की भाषा में कहा। यह एक घोड़ा है। तुम सपना नहीं देख रहे हो। जल्दी करो यदि तुम सवारी का मजा लेना चाहते हो।

The Summer of the Beautiful White Horse Class 11 Hindi Explanation – Para-2



I knew………………………alone steel.

मैं जानता था कि मेरा भाई मुराद जीवित रहने का आनन्द किसी भी अन्य व्यक्ति की अपेक्षा अधिक लेता था, ऐसे व्यक्ति जो संसार में गलती से आ टपके है पर इस समय का दृश्य तो अविश्वसनीय था।
पहली बात, मेरी सबसे पुरानी स्मृतियाँ तो घोड़ो से जुड़ी थी और मेरी पहली तमन्ना भी घोड़े की सवारी करनी थी। यह एक विस्मयकारी बात थी।

दूसरी बात, हम लोग निर्धन थे।
यह वह कारण था जो मुझे अपनी आंख पर विश्वास नहीं करने दे रहा था।
हम लोग गरीब थे। हमारे पास पैसा न था। हमारा सारा कबीला ही गरीबी से ग्रस्त था। गरोघलेनियन परिवार की हर शाखा अत्यधिक विस्मयकारी और हास्यप्रद निर्धनता में रह रही थी। कोई भी समझ नहीं पाता था कि हमें अपना पेट भरने के लिए पर्याप्त पैसा कहाँ से आता था, परिवार के वृद्ध लोग भी नहीं जानते थे। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि हम लोग अपनी ईमानदारी के लिए विख्यात थे। कई शताब्दियों से हम लोग अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते थे, उस समय भी जब हमारा परिवार हमारे कबीले जगत का सर्वाधिक सम्पन्न परिवार था। हम लोगों को गर्व पहले था, हमारी ईमानदारी दूसरे दर्जे में थी, और इसके बाद हम लोग उचित और अनुचित या सही और गलत मे विश्वास करते थे। हममें से कोई भी संसार में किसी भी व्यक्ति से लाभ नहीं उठाते थे, चोरी करने की बात तो बहुत दूर थी।

The Summer of the Beautiful White Horse Class 11 Hindi Explanation – Para-3



Consequently………………………I chose.

अतएव, यद्यपि मैं घोड़ा देख रहा था, इतना शानदार; यद्यपि मुझे उसको गंध आ रही थी, जो इतनी प्यारी थी; यद्यपि मैं उसकी सांस की आवाज सुन रहा था, जो इतनी उत्तेजक थी, फिर भी मैं विश्वास नहीं कर पा रहा था कि यह घोड़ा मुराद का है, अथवा मेरा या मेरे परिवार के किसी भी सदस्य का था, नींद में अथवा जगा हुआ किसी भी स्थिति में यह असम्भव था, क्योंकि मैं जानता था कि मुराद घोड़ा खरीदने की स्थिति में तो है नहीं, और यदि उसने घोड़ा खरीदा नहीं तो इसे चुराया ही होगा, और चोरी करने की बात मेरे जहन में बैठ नहीं रही थी।

गरोघलेनियन परिवार का कोई सदस्य चोर नहीं हो सकता था। मैं पहले तो भाई को घूरता रहा, फिर मैंने घोड़े पर आँखें टिकाई। दोनों में एक प्रकार की पावन निश्चलता तथा हास्यमयता थी जिससे एक ओर तो मुझे खुशी हुई और दूसरी और भय लगा।

मुराद, मैं बोला, यह घोड़ा तुमने कहाँ से चुराया?
खिड़की से बाहर छलांग लगाओ, वह बोला, यदि इस पर सवारी करना चाहते हो।
उस समय यह सच था। उसने घोड़ा चुराया था। इस बात में कोई शंका नहीं थी। मुझे उस पर सवारी के लिए बुलाने आया था।

The Summer of the Beautiful White Horse Class 11 Hindi Explanation – Para-4



Well, it………………………to roar.

खैर, मुझे लगा कि सवारी के आनन्द के लिए घोड़ा चुराना तथा किसी अन्य चीज जैसे धन के लिए, चोरी करना इनमें भिन्नता है। जहाँ तक मेरी जानकारी थी, वह शायद चोरी थी ही नहीं। यदि आप में घोड़े के लिए इतनी लालसा या दीवानापन है जितनी मुराद में तथा मुझ में थी, तो उसे चोरी नहीं कहा जाएगा। वह चोरी तब बन जाएगी जब हम घोड़े की बेचेंगे, और ऐसा हम कभी भी नहीं करने वाले थे।
मुझे कपड़े तो पहन लेने दो, मैं बोला।
ठीक है, उसने कहा, लेकिन जल्दी करो।
मैने झटपट कपड़े पहने।

मैंने आँगन में छलांग लगाई तथा भाई मुराद के पीछे घोड़े पर बैठ गया। उन दिनों हम नगर वालनट टाउन की सीमा पर रहा करते थे। हमारे घर के पीछे ग्रामीण क्षेत्र था : अंगूर तथा केलों के बाग, सिंचाई के लिए बने गड्डे तथा देहाती सड़कें। तीन मिनट से कम समय में हम लोग आलिव ऐवेन्यू पहुँच गए और फिर घोड़े ने भागना शुरू कर दिया। हवा में ताजगी थी, साँस लेना बहुत अच्छा लग रहा था। घोड़े के दौड़ने की अनुभूति भी बहुत अच्छी थी। मेरा भाई मुराद जिसकी परिवार में सबसे अधिक सनकी व्यक्तियों में गिनती की जाती थी, गाने लगा। मेरा कहने का मतलब है वह गरजने लगा।

The Summer of the Beautiful White Horse Class 11 Hindi Explanation – Para-5



Every………………………get down.

हर परिवार में सनकीपन की एक धारा कहीं न कहीं होती है। मुराद कबीले में उसी सनकीपन की धारा का स्वाभाविक वंशज था। उससे पूर्व हमारे अंकल खोसरोव थे जो भारो डील-डौल वाले व्यक्ति थे, सर पर काले बाल थे तथा सन जोकिन वैली में सबसे बड़ी मूंछों वाले थे, उनका क्रोध बहुत भीषण था, वह इतने चिड़चिड़े तथा बेसब्री वाले थे कि वह किसी को भी अपनी दहाड़ के आगे बोलने नहीं देते थे, कोई बात नहीं, इस पर ध्यान मत दो।

वह यही बोलते थे, सामने वाला चाहे कुछ भी कह रहा हो। एक बार उनका अपना बेटा अरक दौड़कर आठ मकानों से परे नाई की दुकान पर गया जहाँ उसके पिता अपनी मूछें ठीक करवा रहे थे, उसने बताया कि घर में आग लग गई है। खोसरोव कुर्सी पर सीधे बैठ कर दहाड़े कोई डर की बात नहीं, उस पर ध्यान मत दो। नाई ने कहा, पर बालक कह रहा है कि आपके घर को आग लग गई है। इस पर खोसरोव दहाड़े, काफी हो गया, कोई खतरे की बात नहीं, मैं कह जो रहा हूँ।

मेरा भाई मुराद उन्हीं का वंशज था, यद्यपि मुराद के पिता जोरब थे जो व्यवहारिक होने के अलावा अन्य कुछ भी न थे। यह था हमारे कबीले का हाल। व्यक्ति किसी बालक का पिता चाहे हो जाए पर इसका यह अर्थ नहीं कि वह उसको मनोवृत्ति का भी जनक हो। हमारी जनजाति में प्रवृत्तियों का वितरण शुरू से ही आवारा तथा मनमौजी किस्म का था।
हमने सवारी की तथा मेरे भाई ने गाने गाए। यह सबको पता था कि हम अभी भी पुराने ग्रामीण क्षेत्र में हैं जहाँ के, हमारे कुछ पड़ोसियों के अनुसार- हम मूल निवासी है। हमने घोड़े को दौड़ने की पूरी छूट दे दी। अंत में मुराद बोला अब तुम उतर जाओ, मैं अकेला ही सवारी करूंगा।
क्या तुम मुझे भी अकेले सवारी करने का मौका दोगे? मैंने पूछा।
यह तो घोड़े की इच्छा पर है, मेरा भाई बोला उतर जाओ।
घोड़ा मुझे सवारी करने देगा, मैने कहा।
देखा जाएगा, वह बोला। यह मत भूलो कि मुझे घोड़ो को काबू में करना आता है।
अच्छा, मैं बोला, जो हुनर तुम्हारे पास है मेरे पास भी है।
तुम्हारी सुरक्षा इसी में है, वह बोला, अब उतर भी जाओ।

The Summer of the Beautiful White Horse Class 11 Hindi Explanation – Para-6



All right………………………he said.

ठीक है, मैं बोला, पर याद रखो कि तुम्हें मुझे भी अकेली सवारी करने का अवसर देना होगा।
मैं उतर गया तथा मेरे भाई ने घोड़े को एड़ लगाई तथा चिल्लाया, बजीरे, दौड़। घोड़ा पिछली टाँगों पर खड़ा हो गया, फुफकारा तथा पूरी गति से दौड़ चला, बहुत प्यारा लग रहा था। मुराद ने घोड़े को सूखी घास के मैदान से होते हुए सिचाई ताल पर ले गया, उस गड्ढे को भी पार किया तथा पाँच मिनट बाद पानी से तर लौट आया।

सूर्य आकाश में ऊपर उठ रहा था।
अब सवारी करने की बारी मेरी है, मैं बोला।
मुराद घोड़े से उतर गया।
लो करो सवारी, वह बोला।
मैं घोड़े की पीठ पर उछलकर बैठ गया और एक क्षण के लिए बहुत भयभीत मैंने महसूस किया। घोड़ा टस से मस नहीं हुआ।

इसे एड़ी से ठोकर मारो, मेरा भाई मुराद बोला। किस बात का इन्तजार कर रहे हो? हमें घोड़े को वापस भी ले जाना है, लोगों के जग जाने से पूर्व ही।
मैंने घोड़े की मांसपेशियों में ठोकर लगाई। पुन: घोड़ा पिछली टांगों पर खड़ा हो गया तथा फुफकारा। फिर उसने दौड़ना शुरू कर दिया। मेरी समझ में नहीं आया कि क्या करूं। खेतों को पार करके सिंचाई ताल की ओर जाने के बजाय घोड़ा सड़क पर डिकरन हलाबियन अंगूर के बाग में पहुँच गया। जहाँ वह अंगूर की बेलो पर उछल-कूद मचाने लगा। जब उसने सात बेल को रौंद दिया, मैं गिर गया। फिर वह दौड़ता रहा।

मुराद सड़क पर भागता हुआ मेरे पास आ गया।
मुझे तुम्हारी चिन्ता नहीं है, वह चीखा। हमें घोड़े को पकड़ लेना जरूरी है। तुम इस ओर जाओ और मैं दूसरी ओर। यदि घोड़ा मिल जाए तो नम्रता से पेश आना मैं पास ही रहूँगा।
मैं सड़क पर भाग चला और मुराद खेतों के पास सिंचाई ताल की ओर चला गया। उसे घोड़ा खोजने में तथा लाने में कोई आधा घण्टा लग गया।
ठीक है, वह बोला, अब इस पर सवार हो जाओ।
सारी दुनिया जग चुकी है। हम लोग अब क्या करेंगे? मैंने पूछा।
वह बोला, हम लोग या तो इसे वापस ले जाएंगे अथवा कल प्रातः तक इसे कहीं छिपा देंगे। उसकी आवाज में कोई घबराहट न थी और मैं जानता था वह इसे छिपा देगा, वापस नहीं पहुंचाएगा। कम-से-कम कुछ समय तक तो नहीं।
हम इसे कहा छिपाएँगे? मैंने पूछा।
मुझे ऐसा स्थान पता है, वह बोला।

The Summer of the Beautiful White Horse Class 11 Hindi Explanation – Para-7

How long………………………understand me.

तुमने कितने दिन पूर्व इस घोड़े को चुराया था? मैने पूछा।
उसे सहसा याद आ गया कि वह प्रातः घुड़सवारी कई दिनों से कर रहा है तथा मेरे पास तो आज ही आया था क्योंकि वह जानता था मुझे सवारी करने की कितनी तीव्र इच्छा है।
किसने कहा कि मैंने घोड़ा चुराया है? वह बोला।
अच्छा यह बताओ, मैं बोला, कि कितने दिनों से तुम हर प्रातः घुड़सवारी करते रहे हो?
आज ही सवारी की है, वह बोला।
क्या तुम सच बोल रहे हो? मैंने कहा।
नहीं, कतई नहीं, वह बोला, पर यदि तुम यह कहना चाहते हो कि कहीं हम पकड़े गए तो क्या होगा। मैं नहीं चाहता। हम दोनों झूठे बने। तुम यही जानते हो हमने आज प्रातः ही सवारी की।
ठीक है, मैंने कह दिया।
वह घोड़े को चुपचाप एक वीरान पड़े बखार में ले गया जो कभी एक किसान फतवाजिओं का हुआ करता था। उस खत्ती में कुछ जई तथा लसुनघास रखे थे।
फिर हम घर को लौट चले।
यह काम आसान नहीं था, वह बोला, कि घोड़े को इतना सीधा बना लिया जाए। प्रारम्भ में वह जंगलीपन बेलगाम से दौड़ना चाहता था, पर जैसा मैंने बताया मैं घोड़े को सुधारना जानता हूँ। मैं उससे कोई भी काम करवा सकता हूँ। घोड़े मेरी बात समझते हैं।

The Summer of the Beautiful White Horse Class 11 Hindi Explanation – Para-8

How do………………………understand it.

तुम ऐसा किस प्रकार से कर लेते हो? मैंने कहा।
मेरा घोड़े के साथ एक समझौता है, वह बोला।
पर वह समझौता किस प्रकार है? मैंने पूछा।
सीधा, सरल तथा ईमानदारी पूर्ण, वह बोला।
मैंने कहा, काश मैं भी घोड़े से ऐसा कोई समझौता कर पाता।
तुम अभी छोटे हो, वह बोला। जब तुम तेरह वर्ष के हो जाओगे तो तुम्हें घोड़े को सिधाना आ जाएगा।
मैं घर गया तथा मैने छककर नाश्ता किया।

उस शाम अंकल खोसरोव मेरे घर कॉफी तथा सिगरेट पीने आए। वह बैठक में बैठकर कॉफी पीने तथा सिगरेट पीने लगे, वह पुराने ग्रामीण अंचल को याद कर रहे थे। फिर एक अन्य आगन्तुक आ गया, एक किसान, उसका नाम जॉन मायरो था, अर्सीनियावासी था जिसने अकेलापन के कारण आर्मीनिया की भाषा बोलना सीख लिया था। मेरी माँ उस आगन्तुक के लिए कॉफी तथा तम्बाकू ले आई, बायरो ने सिगरेट बनाई, कॉफी की चुस्की ली तथा सिगरेट पी, और फिर उदास होकर बोला, मेरा सफेद घोड़ा पिछले माह चोरी हो गया था, अभी तक नहीं मिल पाया है – मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा।

The Summer of the Beautiful White Horse Class 11 Hindi Explanation – Para-9

My uncle………………………Mourad’s house.

मेरे अंकल खोसरोव बहुत नाराज हो गए तथा चिल्लाए, कोई बात नहीं। एक घोड़ा खो गया तो क्या हुआ? हम सबने स्वदेश नहीं खो दिया है? घोड़े के लिए इतना रोना-धोना क्यों?
यह तुम्हारे लिए ठीक हो सकता है, एक नगरवासी के लिए, जॉन बायरो बोले, पर मेरी गाड़ी का क्या होगा? घोड़े के बिना गाड़ी किस काम की?

उस पर ध्यान मत दो, मेरे अंकल खोसरोव ने दहाड़कर कहा।
मैं दस मील पैदल चलकर यहाँ आ पाया हूँ, जॉन बायरो ने कहा।
तुम्हारे पास टाँगे तो हैं, मेरे अंकल चिल्लाए।
मेरी बायी टाँग में दर्द है, किसान बोला।
मत ध्यान दो, मेरे अंकल दहाड़े।
उस घोड़े के मैने 60 डालर दिए थे, किसान बोला।
मैं पैसे पर थूकता हूँ, मेरे अंकल ने कहा।
वह उठ खड़े हुए तथा लम्बे डग भरते हुए घर से बाहर निकल गए, पर्दे का दरवाजा उन्होंने धड़ाके से बंद कर दिया।

मेरी माँ ने मामला साफ़ किया।
उनका दिल बहुत विनम्र है, वह बोली। बात साधारण सी है, उन्हें घर की याद सता रही है और वह इतने लम्बे-चौड़े व्यक्ति भी है।
किसान चला गया तथा मैं अपने भाई मुराद के घर भागकर गया।

The Summer of the Beautiful White Horse Class 11 Hindi Explanation – Para-10

He was………………………Maurad said.

वह एक आड़ू के वृक्ष के नीचे बैठे थे, एक छोटे रोबिन पक्षी के चोट खाए पंख की मरम्मत कर रहे थे जो उड़ नहीं सकता था। वह पक्षी से बात कर रहे थे।
यह क्या है? वह बोले।
किसान, जॉन बायरो, मैने बताया। वह हमारे घर आए थे। वह अपना घोड़ा वापस चाहते हैं। तुम घोड़ा एक माह तक रख चुके हो। मैं चाहता हूँ कि तुम वचन दो कि घोड़े को तब तक लौटाओगे नहीं जब तक मैं सवारी करना सीख नहीं लेता।
तुम्हें तो सवारी करना सीखने में एक वर्ष लग जाएगा, मेरा भाई मुराद बोला।
तो हम लोग घोड़े को एक वर्ष तक अपने पास रख लें, मैंने कहा।
मुराद उछल कर खड़ा हो गया। क्या कहा?
वह चीखा। क्या तुम गरोघलेनियन परिवार के एक सदस्य को चोरी करने का निमन्त्रण दे रहे हो? घोड़े को उसके असली मालिक के पास जाना ही चाहिए।
कब? मैने पूछा।
अधिक-से-अधिक छह माह के अन्दर, वह बोला।
उसने पक्षी को हवा में उड़ा दिया। पक्षी ने बहुत कोशिश की, दो बार लगभग गिर गया, पर अन्त में उड़ गया, ऊपर और सीधे।

हर प्रातः दो सप्ताह तक मुराद और मैं घोड़े को वीरान खत्ती से बाहर निकालते तथा सवारी करते रहे, और हर प्रातः घोड़ा, जब मेरी अकेले सवारी करने की बारी होती, अंगूर की बेलों पर उछल-कूद करता तथा मुझे गिराकर भाग जाता। फिर भी मैं आशा करता रहा कि कभी तो मैं भी मुराद की भांति घुड़सवारी करना सीख लूंगा।
एक प्रातः जब हम फतवजियों के वीरान अंगूर बगीचे की ओर जा रहे थे, हमारी भेंट किसान जॉन बायरो से हो गई जो नगर की ओर जा रहा था।

लो मैं बात करता हूँ, मुराद ने कहा। किसानों से बात करने का हुनर मुझ में है।
शुभ प्रभात, जॉन बायरो, मुराद ने किसान से कहा। किसान ने घोड़े को उत्सुकता से परखा।
शुभ प्रभात मेरे मित्रों के बेटे, वह बोला तुम्हारे घोड़े का नाम क्या है?
मेरा दिल, मुराद ने आर्मीनिया की भाषा में बताया।
प्यारा नाम है इस प्यारे घोड़े का, जॉन मायरो ने कहा। मैं कसम से कह सकता हूं कि यह घोड़ा मेरे पास से कुछ सप्ताह पूर्व चुरा लिया गया था। क्या मैं इसके मुँह में देख लूं?
अवश्य, मुराद ने कहा।
किसान ने घोड़े के मुँह में झाँका।
एकदम वहीं दाँत, वह बोला मैं शपथ के साथ कह सकता हूँ कि यह घोड़ा मेरा है, यदि मैं तुम्हारे माता-पिता को न जानता होता। तुम्हारा परिवार अपनी ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध है, यह बात मैं जानता हूँ। फिर भी यह घोड़ा मेरे घोड़े का जुड़वाँ है। सन्देहयुक्त व्यक्ति तो अपनी आँख पर हृदय की अपेक्षा अधिक विश्वास करेगा। शुभ दिन, मेरे युवा मित्रों गुड डे , जॉन बायरो, मुराद ने कहा।

The Summer of the Beautiful White Horse Class 11 Hindi Explanation – Para-11

Early the………………………attention to it.

दूसरी प्रातः तड़के ही हम घोड़े को जॉन बायरो के बगीचे में ले गए तथा खलिहान में बाँध आए। कुत्तों ने बिना भौके हमारा पीछा किया।
कुत्ते, मैंने धीरे से मुराद को बोला। मैंने तो सोचा था ये भौकेंगे। वे कुत्ते कोई अन्य व्यक्ति होता तो अवश्य भौंकते, मुराद बोला। पर मैं कुत्तों को मित्र बनाना जानता हूँ। मुराद ने अपनी बाँहे घोड़े की गर्दन में डाली, अपनी नाक घोड़े के थूथुन पर रख दी, उसे थपकी दी तथा फिर हम लोग चले आए।
उस शाम जॉन बायरो हमारे घर अपनी गाड़ी में आए तथा मेरी माँ को अपना वह घोड़ा दिखाया जो खो गया था।
मेरी समझ में नहीं आता कि मैं क्या सोचूं, उसने कहा। घोड़ा पहले की अपेक्षा अधिक ताकतवर हो गया है। इसका स्वभाव भी बेहतर हो गया है। मैं परमात्मा का आभारी हूँ। मेरे अंकल खोसरोव जो बैठक में थे, चिढ़ गए तथा चिल्लाए, चुप रहो, भले आदमी, चुप रहो तुम्हारा घोड़ा तुम्हें वापस मिल गया है। अब उस बात को भूल जाओ।

Silk Road Class 11 Hindi Explanation

 

Silk Road Class 11 Hindi Explanation – Para-1



A FLALESS………………………clean air.

जिस दिन सुबह हमने विदा ली बेदाग अर्द्धचन्द्रमा सुन्दर नीले आकाश में तैर रहा था। जब सूर्य सुदूर पहाड़ियों की चोटियों पर गुलाबी लालिमा छिड़कने के लिए निकला, लम्बे फ्रंच डबल रोटियों की तरह फैले हुए बादलों के किनारे गुलाबी चमक रहे थे। जब हम रावू से चले तो लाहमो ने कहा कि वह मुझे विदाई का उपहार देना चाहती है। एक दिन सायंकाल मैंने उसे डेनिअल के माध्यम से बताया था कि मैं कोरा पूरा करने कैलाश पर्वत की ओर जा रहा हूँ, तब उसने कहा कि आपको गर्म कपड़े ले लेने चाहिए। तब वह झुककर टेंट में गई और एक लम्बी बाँहों वाला भेड़ की खाल का कोट लायी जो सभी पुरुष पहनते हैं। और जब हम कार में चढ़ रहे थे तो त्सेतन ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और कहा, “ओ हाँ, ड्रोक्बा, सर।’”

चांगतांग को पार करने के लिए हमने एक छोटा रास्ता लिया। त्सेतन को एक ऐसे रास्ते का पता था जो हमें दक्षिण पश्चिम की ओर सीधे कैलाश पर्वत की ओर ले जाएगा। उसमें कई ऊँचे पर्वत पार करने होंगे, वह बोला। परन्तु उसने हमें आश्वस्त किया कि “यदि बर्फ न हुई तो कोई समस्या नहीं होगी?” उसकी कितनी सम्भावना है मैंने पूछा। “कुछ नहीं पता, सर, जब तक हम वहाँ पहुँच नहीं जाते।”

रावू में धीरे-धीरे घूमते हुए पहाड़ियों से हमने छोटे मार्ग से विशाल खुला मैदान पार किया जिसमें केवल कुछ हिरन थे जो अपनी सूखी चरागाह में घास चरना छोड़कर हमें घूरते और फिर छलांग लगाकर शून्य में चले जाते। आगे जहाँ मैदान पथरीला अधिक और घास कम थी, जंगली गधे दिखाई दिए। उनके दिखाई देने से पहले ही हमें बता दिया गया था कि हम उनके समीप पहुँच रहे है। “क्यांग”, उसने सुदूर धूल के एक आवरण की ओर संकेत करके कहा। जब हम उनके निकट पहुँचे तो मैंने देखा कि वे इकट्ठे चौकड़िया भर रहे थे। एक दूसरे के साथ सिमट कर ऐसे घूम और मुड़ रहे थे जैसे किसी पूर्व निर्धारित रास्ते पर युद्धाभ्यास कर रहे हों। स्फूर्तिदायक, स्वच्छ वायु में धूल के पीछे लहरा रहे थे।

Silk Road Class 11 Hindi Explanation – Para-2



As hills………………………from Tibet.

जब पहाड़ पथरीली वीरान भूमि से ऊँचे उठने शुरू हो गए, तो हम भेड़ें चराते हुए एकाकी ड्रोक्बा (गड़रियों) के पास से गुजरे। कभी कोई पुरुष, कभी कोई स्त्री, ये ठीक प्रकार कपड़ों में लिपटे लोग रुक कर हमारी कार की ओर देखते, और कभी-कभी हमारी ओर हाथ भी हिला देते थे। जब हमारा रास्ता उनके पशुओं के पास से गुजरता था, तो भेड़ें हमारे तेज वाहन से बचने के लिए रास्ते से हटकर दूसरी ओर हो जाती थीं।

हम बंजारों के काले तम्बुओं के पास से गुजरे जो शान के साथ अलग-थलग गड़े हुए थे और जिनके आगे प्राय: बड़ा काला तिब्बती कुत्ता मेस्टिक पहरे पर खड़ा था। जब इन भारी भरकम पशुओं को हमारे आने का पता चलता तो ये अपना सिर टेढ़ा कर लेते थे व हम पर दृष्टि गाड़े रहते थे। जब हम उनके पास आते रहते थे, तो वे तुरन्त काम शुरू कर देते थे, हमारी ओर तेजी से आते थे जैसे बन्दूक से गोली छूटी हो, व लगभग उतनी ही तीव्रता से।

इन झबरे भयंकर पशुओं के, जो काली रात में भी काले थे, सामान्यत: लाल पट्टे बंधे होते थे। तथा ये अपने बड़े-बड़े जबड़ों से जोर-जोर से भौंकते थे। वे हमारे वाहन से पूर्ण रूप से निडर थे, तथा सीधे भाग कर हमारे रास्ते में आ जाते थे जिस कारण त्सेतन को ब्रेक लगाना व रास्ते से हटना पड़ता था। और कुत्ता लगभग सौ मीटर तक हमारा पीछा करता था और हमें अपनी सम्पत्ति से बाहर छोड़ने के बाद ही धीमा होता था। यह बात समझना कठिन नहीं है कि प्राचीन काल से ही रेशम मार्ग के साथ-साथ तिब्बत से तोहफे के रूप में इन्हें क्यों लाया जाता था। और चीन के सम्राट के दरबारों में शिकारी कुत्तों के रूप में क्‍यों लोकप्रिय थे।

Silk Road Class 11 Hindi Explanation – Para-3



By now………………………see level.

अब हम क्षितिज पर बर्फ से ढके पहाड़ उभरते हुए देख सकते थे। हमने एक वादी में प्रवेश किया जहाँ नदी चौड़ी थी और अधिकतर धूप में दमकती हुई उजली बर्फ से अटी हुई थी। मार्ग नदी के किनारे से लगा हुआ था और नदी के घुमावों के साथ-साथ मुड़ रहा था, तथा जैसे-जैसे हम ऊँचाई पर चढ़ने लगे घाटी की भुजाएँ आपस में निकट आती गई।

मोड़ अधिक तीखे और सवारी अधिक हिचकोले वाली हो गई, जब हम ऊँचाई पर जा रहे थे, त्सेतन गाड़ी तीसरे गिअर में चला रहा था। मार्ग बर्फीली नदी से हटकर बड़ी कठिनाई से खड़ी ढलानों में चढ़ रहा था जहाँ पर बड़ी-बड़ी चट्टानों पर चमकीली नारंगी काई पुती हुई थी। चट्टानों के नीचे जहाँ लगभग स्थायी छाया थी, वहाँ पर बर्फ के गुच्छे लटके हुए थे। मैंने कानों में दबाव बढ़ता अनुभव किया और मैंने नाक पकड़कर जोर से हुंकार कर उसे साफ कर दिया। हमने एक ओर तीखे मोड़ पर घूमने का संघर्ष किया और त्सेतन ने गाड़ी रोकी। इससे पहले मैं समझ सकता था कि क्या बात है, दरवाजा खोलकर त्सेतन ने छलांग लगाई थी। “बर्फ”, डेनिअल बोला और वह भी दवाजा खोलकर वाहन से बाहर चला गया व उसके ऐसा करने से ठंडी हवा का झोका अन्दर आया।

मार्ग पर हमारे सामने सफेद पदार्थ की चादर बिछी थी। जो हो सकता है पन्द्रह मीटर तक जाकर धीरे-धीरे समाप्त हो रही थी और कच्चा रास्ता फिर दिखाई दे रहा था। बर्फ हमारे दोनों ओर थी, और उसमें ऊपर खड़े ढलान को चिकना बना रही थी। किनारा इतना खड़ा था कि हमारी गाड़ी उस पर चढ़ नहीं सकती थी। और इसलिए बर्फ से ढके हुए रास्ते में घूमकर जाने का कोई रास्ता नहीं था। मैं डेनिअल के पास गया जबकि त्सेतन कड़ी ऊपरी बर्फ वाली परत पर चलने लगा और आगे की ओर खिसकने-फिसलने लगा व समय-समय पर पाँव मारकर देखता था कि बर्फ कितनी कठोर है। मैंने अपनी कलाई घड़ी पर देखा। हम समद्र तल से 5,20 मीटर की ऊँचाई पर थे।

Silk Road Class 11 Hindi Explanation – Para-4



The snow………………………no smoking”.

मुझे बर्फ बहुत गहरी नहीं लग रही थी, परन्तु डेनिअल ने कहा, इतना खतरा उसकी गहराई से नहीं था जितना उसकी ऊपर की बर्फ की परत से था। जब हमने त्सेतन को मुट्ठियाँ भर-भर कर जमी हुई सतह पर फेंकते देखा तो डेनिअल ने सुझाया कि “यदि हम फिसल गए तो कार पलट सकती है।” हम दोनों भी उसकी सहायता करने लगे, और जब बर्फ पर मिट्टी फैल गई, मैं और डेनिअल त्सेतन का भार कम करने के लिए कार से बाहर रहे। उसने कार पीछे की ओर फिर धूल भरी बर्फ की ओर चलाई, उसने बर्फ वाले तल पर कार रोकी और फिर धीरे-धीरे पूरा फासला बिना कठिनाई के पार किया।

दस मिनट के बाद हम एक और बाधा पर रुके। “ठीक नहीं है, सर,” त्सेतन बोला और बाहर के दृश्य का सर्वेक्षण करने के लिए एक बार फिर बाहर छलांग लगाई। इस बार उसने बर्फ से घूमकर कार चलाने का फैसला लिया। ढलान खड़ी थी और उस पर बड़ी-बड़ी चट्टानें जड़ी हुई थी। परन्तु त्सेतन ने उसे किसी-न-किसी ढंग से सफलतापूर्वक पार कर लिया। यद्यपि उसकी चार पहियों पर चलने वाली कार एक बाधा से दूसरी बाधा के बीच लड़खड़ाती रही। ऐसा करने से वह कैंची मोड़ को पार करने से बच गया और आगे रास्ते पर पुन: पहुंच गया जहाँ बर्फ नहीं गिरी थी।

जब हम उजली धूप में चढ़ते जा रहे थे तो मैंने अपनी घड़ी में एक बार फिर देखा। हम 5400 मीटर की ऊँचाई से धीरे-धीरे ऊपर जा रहे थे। मेरा सिर बुरी तरह धक-धक करने लगा। मैंने अपनी पानी की बोतल में से गट-गट पानी पीया, मानते हैं कि इससे तेज चढ़ाई में सहायता मिलती है।

अंत में हम दरें की चोटी पर 5,55 मीटर की ऊँचाई पर पहुँचे। उसे सफेद रिव्बन व झालरदार प्रार्थना ध्वजों से सुसज्जित पत्थरों के स्तूप से चिह्नित किया हुआ था। हम सब ने स्तूप का चक्कर लगाया, घड़ी की सुइयों के घूमने की दिशा में, जैसा कि परम्परा है। त्सेतन ने अपने टायरों की पड़ताल की। उसने पेट्रोल की टंकी के पास रुक कर, उसके ढक्कन के पेंच को आंशिक रूप से खोल दिया। उसमें ऊँची सीं-सीं की ध्वनि आई। वायुमण्डल के कम दबाव के कारण ईंधन फैल गया था। मुझे यह आवाज खतरनाक लगी। हो सकता है,’ सर, त्सेतन हँसा, “परन्तु सिगरेट न पीए।”

Silk Road Class 11 Hindi Explanation – Para-5

My headache………………………forge ahead.

जब हम दरें के दूसरी ओर तेजी से नीचे उतरने लगे, तो मेरा सिर दर्द दूर हो गया। जब हम भोजन के लिए रुके तो दो बज चुके थे। हमने गर्म-गर्म नूडल एक तिरपाल के तम्बू में खाए जोकि सूखी नमक झील के किनारे कार्य-कैम्प के लिए बनाया गया था। पठार को नमक के फ्लैटो और खारे झीलों टेथिस महासागर के भंवरों से सजाया गया है जो तिब्बत की सीमा से पहले महाद्वीप टकराव से टकराए थे, जिसने इसे आकाश की ओर उठा दिया।

यह गतिविधियों का अड्डा था, भेड़ की खाल के कोट पहने, गैतिया व फावड़े उठाए आदमी इधर-उधर जा रहे थे और उनके जूतों पर नमक की परत जमी थी। चौंध से बचने के लिए उन्होंने धूप के चश्मे लगा रखे थे। नमक के ढेर से लदे नीले टूकों की कतार नमक की चकाचौंध सफेद झील में से बाहर आ रहे थे।

तीसरे पहर हम होर के छोटे से नगर में पहुँच गए, वापस मुख्य पूर्व-पश्चिम सड़क पर जो ल्हासा से कश्मीर के पुराने व्यापार मार्ग पर है। डेनिअल जो ल्हासा से लौट रहा था, उसे एक ट्रक में सवारी मिल गई। इसलिए मैंने व त्सेतन ने उसे टायर-मरम्मत की दुकान के बाहर विदा कही। नमक झील से उतरते समय एक दूसरे के तुरन्त पश्चात्‌ ही दो पंकचर हो गए थे और त्सेतन उनको ठीक कराने के लिए उत्सुक था क्योंकि अब उसके पास अतिरिक्त टायर न बचा था। इसके अतिरिक्त दूसरा टायर जो उसने बदला था उसके स्थान पर जो टायर लगाया था वह इतना चिकना हो गया था जैसे मेरा गंजा सिर।

होर बड़ा कुरूप व दुखदायक स्थान था वहाँ वनस्पति का नाम न था, केवल धूल, मिट्टी, वर्षा का एकत्रित कूड़ा कचरा भारी मात्रा में फैला पड़ा था, जो बड़े दुर्भाग्य की बात थी क्योंकि यह नगर मानसरोवर झील के किनारे पर है जो तिब्बत का सबसे पवित्र जल स्त्रोत है। प्राचीन हिन्दू व बुद्ध विश्व ज्ञान में मानसरोवर को चार महान भारतीय नदियों का स्त्रोत माना गया है- सिंध, गंगा, सुतलज और ब्रह्मपुत्र। वास्तव में केवल सुतलज ही इस झील से निकलता है परन्तु अन्य नदियों के जल-स्त्रोत भी कैलाश पर्वत के बाजुओं के पास में ही हैं। हम उस महान पर्वत के बिल्कुल समीप थे और मैं आगे बढ़ने के लिए उत्सुक था।

Silk Road Class 11 Hindi Explanation – Para-6



But I had………………………scared me.

परन्तु मुझे प्रतीक्षा करनी पड़ी। त्सेतन ने मुझे कहा कि मैं होर के एक मात्र कैफे में चाय पी आऊँ, यह भी नगर की अन्य इमारतों की भांति बुरी तरह रंग किए हुए कंकरीट की बनी थी, और उसकी तीन टूटी हुई खिड़कियाँ थीं। उनमें से नजर आने वाले झील के दृश्य ने हवा के झोंकों (के कष्ट) की पूर्ति कर दी।

मेरी सेवा सैनिक कपड़े पहने एक चीनी युवक ने की जिसने ग्लास व चाय की थरमस लाने से पहले गन्दे चीथड़े से मेज पर ग्रीस सब ओर फैला दी।

आधा घण्टे पश्चात्‌ त्सेतन ने मुझे मेरे एकाकी जेल से छुटकारा दिलाया। बहुत से पत्थरों व कूड़े कचरे के पास से गुजर कर हम नगर के बाहर कैलाश पर्वत की ओर चल पड़े।

झील मानसरोवर को देखने के पश्चात्‌ यात्रियों के जो वर्णन मैंने पढ़े थे, मेरा अनुभव उनसे बिल्कुल विपरीत था। एक जापानी भिक्षु, एकाई कवागुची जो वर्ष 900 में यहाँ आया था, इस झील की पवित्रता को देखकर फूट-फूट कर रोने लगा। दो वर्ष पश्चात्‌ इस पवित्र जल का स्वीडन के स्वेन हेदिन पर भी ऐसा ही प्रभाव पड़ा था यद्यपि उसे इस प्रकार की भावुकता प्रकट करने की आदत न थी।

जब हम दोबारा चले तो अंधेरा हो गया था और रात के साढ़े दस बजे हम डारचेन के गेस्ट हाऊस के बाहर आकर रुके। और यह रात भी मुसीबत भरी थी। खुले कचरे के ढेर जिस का नाम होर था, उसमें घूमते हुए मुझे जुकाम फिर से हो गया था। यद्यपि सच कहूँ तो जड़ी बूटियों की चाय से मेरा जुकाम कभी पूर्णत: ठीक न हुआ था। जब मैं सोने के लिए लेटा तो मेरी एक नासिका पुन: बन्द हो गई थी और मुझे विश्वास न था कि दूसरी (नासिका) से मुझे पर्याप्त ऑक्सीजन प्राप्त हो जाएगी। मेरी घड़ी मुझे विश्वास दिला रही थी कि मैं 4,760 मीटर की ऊँचाई पर था। यह स्थान रावू से अधिक ऊँचाई पर तो न था, और मैं वहाँ पर भी रात को कई बार ऑक्सीजन के लिए छटपटाता रहता था। अब तक मैं रात्रि की इन परेशानियों का अभ्यस्त हो चुका था फिर भी मुझे उनसे भय लगता था।

Silk Road Class 11 Hindi Explanation – Para-7



Tired and………………………my wrist.

मैं थका हुआ व भूखा था, मैंने मुँह से साँस लेना आरम्भ कर दिया। कुछ समय पश्चात्‌ मैंने एक नासिका की शक्ति पर बदल लिया जो लगता था पर्याप्त ऑक्सीजन अन्दर आने दे रही थी, परन्तु ज्यों ही मुझे नींद आने लगी थी, मैं यकायक जाग गया। कुछ गड़बड़ थी। मेरी छाती पर विचित्र सा बोझ अनुभव हो रहा था और मैं बैठा गया। क्षण भर में इस हरकत से मेरे नाक का रास्ता साफ हो गया और छाती में जो अनुभव हो रहा था उससे भी राहत मिल गई। कैसी विचित्र बात है, मैंने सोचा।

में फिर लेट गया और फिर प्रयत्न किया, वही परिणाम। मैं ऊँघने की दुनिया में विलीन होने वाला ही था कि किसी चीज ने मुझे कहा “नहीं”। वह वही आपातकालीन बिजली का आवेग होगा, परन्तु यह वैसा न था जैसा पिछले अवसर पर हुआ था। इस बार मैं साँस लेने के लिए तो न छटपटा रहा था, परन्तु मुझे सोने की अनुमति न थी।

एक बार फिर बैठने में मुझे एकदम आराम मिला। मैं खुलकर साँस ले सकता था और मेरी छाती भी ठीक थी। परन्तु ज्यों ही मैं लेटा मेरी नाड़ियाँ भर गई और छाती में अजीब-सा लगा। मैंने दीवार के सहारे सीधा बैठने का प्रयत्न किया परन्तु मुझे इतना चैन न आया कि मैं सो सकता। मुझे कारण का पता न चल सका परन्तु मुझे सोने से भय लग रहा था। एक नन्ही-सी आवाज मेरे अन्दर से कह रही थी यदि मैं सो गया तो मैं फिर कभी न जागूँगा। इसलिए मैं सारी रात जागता रहा।

अगले दिन सवेरे त्सेतन मुझे दारचेन के मेडिकल कॉलेज में ले गया। मेडिकल कॉलेज नया था और बाहर से मठ जैसा दिखता था। उसका भारी मजबूत दरवाजा एक बड़े आंगन में खुलता था। रोगियों को देखने का कमरा अंधेरा व ठंडा था जिसमें एक तिब्बती डॉक्टर बैठा था जिसने मेरी अपेक्षा के विपरीत कोई निजी उपकरण धारण न कर रखे थे। सफेद कोट भी न था। मोटा स्वेटर व ऊनी टोप पहन वह अन्य किसी भी तिब्बती जैसा प्रतीत होता था। जब मैंने उसे अपने नींद न आने के लक्षण व अचानक मेरी न सोने की इच्छा विदित कराई तो उसने मेरी नाड़ी देखते हुए कई प्रश्न किए।

Silk Road Class 11 Hindi Explanation – Para-8



“It’s a………………………its Summit.

“जुकाम है”, अंत में उसने त्सेतन के माध्यम से मुझे बताया। “जुकाम और ऊँचाई का प्रभाव। मैं इसके लिए आप को कुछ दे देता हूँ। मैंने उससे पूछा कया उसके विचार में मैं कोरा योग्य हो जाऊँगा। “ओ हाँ”, उसने कहा, “आप बिल्कुल ठीक हो जाओगे।”

मैं पन्द्रह पुड़ियों से भरा खाकी लिफाफा थामे मेडिकल कॉलेज से बाहर आया। मेरा तिब्बती दवाइयों का पाँच दिन का उपचार था जो मैंने उसी समय आरम्भ कर दिया था। मैंने नाश्ते के बाद वाली पुड़िया खोली और देखा उसमें भूरा चूर्ण था जो मुझे गर्म पानी के साथ लेना था। इसका स्वाद दालचीनी जैसा था। दोपहर के भोजन व सोते समय वाली पुड़ियों की दवा पहचानना कठिन था। दोनों में खाकी-से रंग की छोटी-छोटी गोलियाँ थीं। उनको देखने में भेड़ की मींगने का संदेह होता था। परन्तु निःसंदेह मैंने वे ले लीं। उस रात पूरे दिन के पूर्ण उपचार के पश्चात्‌, मैं गहरी नींद में सोया था। एक शहतीर की भाँति, न कि एक मृत व्यक्ति की भाँति।

जब त्सेतन ने देख लिया कि मैं जीवित रहूँगा, वह मुझे छोड़कर ल्हासा चला गया। बौद्ध होने के कारण उसने मुझ से कहा कि यदि आप मर गए तो कोई बात नहीं, परन्तु इससे कारोबार की हानि होगी।

रात भर अच्छी प्रकार सोने के पश्चात्‌ दारचेन इतना भयानक प्रतीत न होता था। अभी भी यह धूल भरा था, आंशिक रूप से उजड़ा हुआ था, और यहाँ-वहाँ कूड़े-मलबे के ढेर लगे थे, परन्तु सूर्य साफ नीले आकाश में चमक रहा था, और दक्षिण में मैदान के पार हिमालय दिखाई दे रहा था, और सामने विशाल बर्फ से ढकी चोटियों वाला गुंरला मनघाता पर्वत था जिसकी चोटी के ऊपर नन्हा-सा बादल का लच्छा लटका हुआ था।

Silk Road Class 11 Hindi Explanation – Para-9



The town had………………………basic question.

नगर में दो अर्थ विकसित सामान्य स्टोर थे जो चीनी, सिगरेट, साबुन और अन्य बुनियादी सामान व सामान्य प्रार्थना ध्वज बेचते थे। उनमें से एक के सामने दोपहर को लोग पोलो खेलने के लिए इकट्ठा हो जाते थे। खुली हवा में टूटा-फूटा मेज असंगत लगता था और महिलाएँ उस सरिता के बर्फीले पानी में अपने लम्बे बाल धोती थीं, जो मेरे गेस्ट हाऊस के समीप से कोलाहल करती बहती थी। दारचेन शान्त व बिना भागदौड़ वाला नगर था परन्तु मुझे एक ही कमी दिखती थी- वहाँ यात्री न थे।

मुझे पता चला था कि यात्रियों के मौसम के चरम बिन्दु में नगर में यात्रियों की हलचल हो जाती है। बहुत-से अपने ठहरने का प्रबन्ध साथ लेकर आते थे, और अपने तम्बू गाड़कर नगर को किनारों से बढ़ा देते थे और मैदान तक फैल जाते थे। मैंने अपना आने का समय मौसम के आरम्भ के लिए चुना था, परन्तु सम्भवत: मैं बहुत पहले आ गया था।

एक दिन तीसरे पहर दारचेन के एक मात्र केफे में चाय का ग्लास पीते समय में अपने विकल्पों पर विचार करने लगा। थोड़ा सोच-विचार करने के पश्चात्‌ मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि वे अत्यन्त सीमित थे। स्पष्ट था कि मैंने अपने सकारात्मक विचारों में स्वयं सहायता करने में अधिक सफलता प्राप्त न की थी।

मेरे पक्ष में यह बात थी कि मुझे अपने सोने की परेशानियों से आराम न मिला था, परन्तु चाहे मैं इस बारे में कैसे भी सोचता, मैं केवल प्रतीक्षा ही कर सकता था। यात्री पथ खूब प्रचलित था, परन्तु मैं उस पर अकेला जाना न चाहता था। ‘कोरा’ का मौसम होता था क्योंकि मार्ग के कुछ भाग की बर्फ से बन्द होने की सम्भावना रहती थी। मुझे कुछ पता न था कि बर्फ साफ हो गई है या नहीं परन्तु दारचेन की सरिता के किनारों पर चिपटी गदली बर्फ के खण्डों को देखकर मैं निरुत्साहित हो जाता था। जबसे त्सेतन गया था मुझे दारचेन में कोई एक व्यक्ति भी न मिला था। जिसे इतनी अंग्रेजी आती हो जो मेरे इस अति मूल प्रश्न का उत्तर दे सके।

Silk Road Class 11 Hindi Explanation – Para-10



Until, that………………………of fieldwork.

अर्थात्‌ जब तक मैं नोरबू से नहीं मिला था। कैफे छोटा, अंधेरा और गुफा तुल्य था जिसमें धातु की भट्टी थी जो बीच में गहरी होती है। दीवारें व छत प्लास्टिक की रंग बिरंगी चादरों से गुथी थी, धारीदार प्रकार की चौड़ी, नीली, लाल व सफेद, वेजिन का प्रयोग मजबूत बड़े-बड़े हाट करने के थैले बनाने के काम आता है, और जो समस्त चीन में, एशिया में व यूरोप में बिकते हैं। इस प्रकार प्लास्टिक चीन की सिल्क मार्ग के साथ-साथ सबसे सफल निर्यात वस्तु अवश्य ही होगी।

केफे में केवल एक खिड़की थी जिसके पास मैंने स्थान ले लिया था ताकि मैं अपनी नोट बुक के पन्‍ने देख सकूँ। मैं अपने साथ एक उपन्यास भी लाया था ताकि समय अच्छी प्रकार व्यतीत कर सकूँ।

जब नोरबू अन्दर आया उसने मेरी पुस्तक देख ली और इशारे से पूछा कि क्या वह मेरे सामने उस क्षीण मेज पर बैठ जाए। “आप-अंग्रेज?” उसने चाय का आर्डर देने के पश्चात्‌ पूछा। मैंने कहा कि मैं अंग्रेज हूँ, और हमारा वार्तालाप आरम्भ हो गया।

मैंने सोचा कि वह उस क्षेत्र का नहीं है क्योंकि उसने विंडचीटर पहन रखी थी और पश्चिमी ढंग का धातु के फ्रेम वाला चश्मा पहन रखा था। उसने मुझे बताया कि मैं तिब्बती हूँ और बीजिंग में चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंसिज में इन्स्टिट्यूट ऑफ एथनिक लिट्रेचर में काम करता था। मेरी धारणा थी कि वह किसी अनुसंधान कार्य में लगा हुआ था।

Silk Road Class 11 Hindi Explanation – Para-11



“Yes and no………………………too big.

“हाँ और न” वह बोला। “मैं ‘कोरा’ करने आया हूँ।” मेरा दिल उछल पड़ा। नोरबू कई वर्षों से कैलाश कोरा व बौद्ध साहित्य में उसके महत्त्व पर शैक्षणिक लेख लिख रहा था। परन्तु उसने वास्तव में कभी ऐसा न किया था।

जब मेरी बारी आई उसे यह बताने की कि मैं दारचेन क्यों आया था, उसकी आँखे चमक उठीं। “हम मिलकर चल सकते हैं”, वह उत्तेजनापूर्वक बोला। “दो शास्त्री जो पुस्तकालयों से भाग आए है।” शायद मेरी सकारात्मक बुद्धि वाली योजना काम करने लग पड़ी थी।

नोरबू भी गेस्ट हाउस में ठहरा हुआ था, उसे मिलने की प्रारम्भिक राहत यह जानकर कम हो गई कि उसके पास भी मेरी भाँति यात्रा की आवश्यक सामग्री की कमी थी। वह मुझे बताता रहता था कि वह कितना मोटा है, और उसके लिए कितनी कठिनाई आएगी। “बहुत ऊँचाई है,” वह मुझे याद दिलाता रहता, “और चलना कितना थकाने वाला।” वास्तव में वह बुद्ध धर्म का पालन न कर रहा था, परन्तु उसमें जोश था और वह तिब्बती भी था।

मूलत: मैंने यात्रा भक्त जनों के संग करने की सोची थी। परन्तु सोच-विचार करने के पश्चात्‌ मैंने निर्णय लिया कि नोरबू आदर्श साथी रहेगा। उसने सामान ढोने के लिए कुछ याक भाड़े पर लेने का सुझाव दिया, जिसका मैंने अच्छा अर्थ समझा, और उसकी पहाड़ की परिक्रमा के समय दण्डवत लेटने का कोई इरादा न था। “सम्भव नहीं,” मेज पर। लेटकर वह पागलों की भाँति हँस कर बोला। यह उसकी शैली न थी। और फिर उसकी तौन्द भी बहुत बड़ी थी।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation

 

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-1



The Jijamata………………………checking permits.

जीजामाता एक्सप्रेस गाड़ी पुणे-बम्बई मार्ग पर दक्कीन क्वीन की अपेक्षा कुछ अधिक तीव्र गति से जा रही थी। पुणे के बाहर कोई औद्योगिक शहर नहीं थे। अगला पड़ाव लोनावाला 40 मिनट में आ गया। उसके बाद घाट का खण्ड आया जो वैसा ही था जैसे उसे जानता था। गाड़ी करजात में थोड़ी देर रुकी और फिर कल्याण में से दहाड़ती हुई निकल गई।

इसी बीच प्रोफेसर गायतोंडे के तेजी से भागते मन ने बम्बई में काम-काज की योजना बना ली थी। वास्तव में एक इतिहासकार के रूप में उसे लगा कि उसे यह विचार पहले ही आ जाना चाहिए था। वह किसी बड़े पुस्तकालय में जाएगा और वहाँ इतिहास की पुस्तकों के पृष्ठ उलट-पलट कर देखेगा। यही ठीक ढंग था यह जानने का कि वर्तमान स्थिति कैसे आई थी। उसने यह भी सोचा कि वह अंतत: पुणे वापस आकर राजेन्द्र देशपाण्डे से लम्बी बातचीत करेगा, जो उसे अवश्य समझा देगा कि यह कैसे हुआ था।

अर्थात्‌, यह मानकर कि राजेन्द्र देशपाण्डे नामक व्यक्ति अभी इस संसार में जीवित है। लम्बी सुरंग के पार गाड़ी रुक गई। यह छोटा स्टेशन था जिसका नाम सरहद था। एक एंग्लो-इण्डियन वर्दी पहने गाड़ी में अनुमति पत्रों की जाँच करता हुआ घूम गया।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-2



“This is………………………British officers”.

“यहाँ से ब्रिटिश राज शुरू होता है। मेरे विचार में आप पहली बार आ रहे है?” खान साहिब ने पूछा।“
‘हाँ।’ ”उत्तर वास्तव में सही था। गंगाधरपंत इस बम्बई में पहले कभी नहीं आया था। उसने अनुमान लगाकर प्रश्न पूछा, “और खान साहिब आप पेशावर कैसे जाएँगे?”
“यह गाड़ी विक्टोरिया टरमिनस जाती है। मैं आज रात सैन्ट्रल से फ्रन्टिअर मेल ले लूँगा।”
“वह कितनी दूर तक जाती हैं? किस रास्ते से?”
“बम्बई से दिल्‍ली, फिर लाहौर, और फिर पेशावर। लम्बी यात्रा है। मैं परसों तक पेशावर पहुँचूँगा।”

उसके बाद खान साहिब अपने व्यापार के विषय में बहुत कुछ बताने लगे व गंगाधरपन्त ध्यान से सुनता रहा। क्योंकि उसे उस भारत के रहने-सहने का स्वाद पता चला जो इतना अलग भारत था। अब गाड़ी शहर के बाहरी भाग के रेल यातायात में से जा रही थी। नीले डिब्बों पर एक तरफ GBMR लिखा था।

“ग्रेटर बम्बई मेट्रोपोलिटन रेलवे”, खान साहिब ने स्पष्ट किया। “देखते हो, प्रत्येक डिब्बे पर छोटा-सा यूनियन जैक छपा है। यह याद दिलाता है कि हम ब्रिटिश सीमाक्षेत्र में है।”

दादर से परे गाड़ी धीमी होने लगी और अपने गन्तव्य स्थान, विक्टोरिया टरमिनस पर रुकी। स्टेशन बहुत साफ-सुथरा था। स्टाफ में अधिकांश एंग्लो-इण्डियन व पारसी थे, और साथ में कुछ मुट्ठी भर अंग्रेज अधिकारी।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-3



As he………………………works here?”.

स्टेशन से निकलकर गंगाधरपन्त एक प्रभावशाली भवन के सामने आया। जो नहीं जानते थे कि यह प्रमुख स्थान क्या है, उन्हें उस पर लिखे अक्षर बता रहे थे: ईस्ट इण्डिया कम्पनी का, ईस्ट इण्डिया मुख्यालय।

यद्यपि वह किसी चौंकाने वाली बातों के लिए तैयार नहीं था फिर भी प्रोफेसर गायतोंडे जैसी अपेक्षा नहीं थी। ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1857 की घटनाओं के तुरन्त बाद समाप्त हो गई थी। कम-से-कम इतिहास की पुस्तकों में तो ऐसा ही लिखा है। अभी तक यह न केवल जीवित था बल्कि फलता-फूलता था, इसलिए इतिहास ने 1857 से पहले एक अलग मोड़ ले लिया था। यह कब और कैसे हुआ होगा। उसे इसका पता लगाना था।

जब वह उस सड़क पर जा रहा था जिसका नाम हार्नबी रोड था, उसने वहाँ अलग प्रकार की दुकानें व कार्यालयों के भवन देखे। उसकी जगह कोई हैन्डलूम हाऊस भवन नहीं था। इसके स्थान पर वहाँ जूते तथा वूलवर्थ के डिपार्टमेन्टल स्टोर थे; लाइड्ज, बार्कलेज व अन्य ब्रिटिश बैंकों के प्रभावशाली भवन थे; जो इंग्लैंड के किसी शहर की सड़क पर जैसे दिखाई देते थे।

वह दायीं ओर होम स्ट्रीट में मुड़ा और फोर्बिस भवन में गया।
“मैं मि. विनय गायतोंडे से मिलना चाहता हूँ”, उसने अंग्रेज स्वागतकर्त्ती महिला से कहा।

उसने टेलीफोन की सूची, स्टाफ की सूची और फिर फर्म की सभी शाखाओं में काम करने वाले कर्मचारियों की सूची देखी। उसने सिर हिलाया और कहा, “मुझे उस नाम का कोई व्यक्ति यहाँ या अन्य किसी शाखा में काम करने वाले कर्मचारियों की सूची में नहीं मिला। क्या आप पक्का जानते है कि वह यहाँ काम करता है?”

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-4



This was………………………last volume.

यह आघात अनापेक्षित नहीं था। यदि वह स्वयं इस संसार में मर चुका था, तो क्या गारन्टी थी कि उसका पुत्र जीवित होगा? वास्तव में हो सकता है कि वह पैदा ही न हुआ हो!

उसने लड़की को विनम्रता से धन्यवाद दिया और बाहर आ गया। ठहरने के स्थान के बारे में चिन्ता न करना उसकी विशिष्टता थी। उसकी मुख्य चिन्ता तो यह थी कि इतिहास की पहेली को सुलझाने के लिए एशिएटिक सोसाइटी के पुस्तकालय में जाया जाए। जल्दी से रेस्टोरेन्ट में भोजन करके वह सीधा टाऊन हाल पहुँचा।

उसने चैन की सांस ली कि टाऊन हाल वहीं था और पुस्तकालय भी उसी में था। वह वाचनालय में गया और इतिहास की पुस्तकों की सूची मंगाई जिसमें उसकी अपनी लिखी हुई पुस्तकें भी सम्मिलित थी।

उसकी पाँच पुस्तकें उसकी मेज पर आ गई। उसने शुरू से आरम्भ किया। पहली पुस्तक अशोक काल तक की थी, दूसरी समुन्द्रगुप्त तक, तीसरी पुस्तक मोहम्मद गौरी तक और चौथी औरंगजेब की मृत्यु तक। इस काल तक का इतिहास वैसा था जैसा उसे पता था परिवर्तन स्पष्टत: अन्तिम पुस्तक में था।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-5



Reading volume………………………expansionist programme.

पांचवीं पुस्तक को दोनों ओर से अन्दर की ओर पढ़ते-पढ़ते, गंगाधरपन्त बिल्कुल उस स्थान पर आ गया जहाँ पर इतिहास ने अलग मोड़ लिया था।

पुस्तक के उस पृष्ठ पर पानीपत की लड़ाई का वर्णन था और उसमें लिखा था कि मराठों ने वह लड़ाई अच्छे तरीके से जीत ली थी। अब्दाली पूर्णत: पराजित हो गया था और उसे विजयी मराठा सेना ने जिसका नेतृत्व सदाशिव राव भाऊ और उसका भतीजा युवक विश्वासराव कर रहे थे, वापस काबुल खदेड़ दिया था।

पुस्तक में लड़ाई के पग-पग का वर्णन नहीं था। किन्तु उसमें भारत में शक्ति संघर्ष का बड़े परिश्रम से विवरण दिया हुआ था। गंगाधरपन्त ने उस विवरण को बहुत उत्सुकता से पढ़ा। लिखने की शैली नि:सन्देह उसी की थी। फिर भी वह उस वर्णन को पहली बार पढ़ रहा था।

लड़ाई में मराठा की विजय से न केवल उनके मनोबल को बढ़ावा मिला बल्कि उत्तरी भारत में उनकी उच्चतम सत्ता स्थापित हो गई। ईस्ट इण्डिया कम्पनी जो इसे किनारे पर खड़े इस प्रगति को देख रही थी, उन्हें सन्देश मिल गया। उन्होंने अपनी विस्तार की योजना को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-6



For the………………………central parliament.

पेशवा के लिए इसका तुरन्त परिणाम यह हुआ कि भाऊसाहब और विश्वासराव का प्रभाव बढ़ गया, जो बहुत ठाठ-बाठ के साथ सन्‌ 1780 में अपने पिता का उत्तराधिकारी बना। परेशानी पैदा करने वाले दादासाहब को पीछे हटना पड़ा और अन्त में उसने राज्य की राजनीति से सन्यास ले लिया।

ईस्ट इण्डिया कम्पनी को नए मराठा शासक, विश्वासराव को अपनी बराबरी का व्यक्ति पाकर बहुत व्याकुलता हुई। वह और उसके भाई माधवराव में राजनीतिक तीक्ष्णता तथा वीरता का मिलाप था और उन्होंने सोचे-समझे तरीके से पूरे भारत पर अपना प्रभाव जमा लिया था, और कम्पनी का प्रभाव अन्य यूरोपियन प्रतिस्पर्घियों, पुर्तगाली और फ्रांसिसियों की तरह केवल बम्बई, कलकत्ता तथा मद्रास के आस-पास तक सिमट कर रह गया था।

राजनीतिक कारणों से पेशवाओं ने दिल्‍ली में मुगल शासन को जिन्दा रखा। उन्‍नीसवीं शताब्दी के पुणे के ये असली शासक इतने स्याने थे कि उन्होंने यूरोप में शिल्प युग के शुरू होने के महत्त्व को समझा। उन्होंने अपने विज्ञान व शिल्प के केन्द्र स्थापित किए। यहाँ, ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर देखा। उन्होंने सहायता और विशेषज्ञ देने का प्रस्ताव रखा। स्थानीय केन्द्रों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया।

पश्चिम से प्रेरित होकर बीसवीं शताब्दी में और अधिक परिवर्तन हुए। भारत लोकतन्त्र की ओर अग्रसर हुआ। उस समय तक पेशवा का उद्यम समाप्त हो चुका था और धीरे-धीरे निर्वाचित तन्त्रों ने उनका स्थान ले लिया था। दिल्‍ली की सल्तनत इस परिवर्तन में भी बनी रही। मुख्यत: इसलिए कि उनका कोई वास्तविक प्रभाव नहीं था। दिल्‍ली के सम्राट के पास नाम मात्र का शासन था, जो केन्द्रीय संसद द्वारा सिफारिशों पर अनुमति की मोहर लगा देता था।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-7



As he………………………his heart.

पढ़ते समय, गंगाधरपन्त ने जो भारत देखा था उसकी प्रशंसा करने लगा। यह वह देश था जो गोरो का दास नहीं बना था। उसने अपने पैरों पर खड़े होना व आत्म-सम्मान का मूल्य समझ लिया था। सशक्त होते हुए व केवल व्यापारिक कारणों से उसने अंग्रेजों की बम्बई इस उप महाद्वीप में एक मात्र चौकी रूप में रखने की अनुमति दे दी थी। सन्‌ 1908 की संधि के अनुसार यह पट्टा वर्ष 2001 में समाप्त होना था।

गंगाधरपन्त जिस देश से परिचित था तथा जो कुछ वह अपने चारों ओर देख रहा था, वह उनकी तुलना किए बिना रह न सका। लेकिन, साथ ही उसे प्रतीत हुआ कि छानबीन अधूरी थी। मराठों ने युद्ध कैसे जीता? इसका उत्तर जानने के लिए उसे युद्ध का वर्णन देखना जरूरी था। उसने अपने सामने पड़ी पत्रिकाओं और पुस्तकों को पढ़ा। अन्त में उन पुस्तकों में उसे एक पुस्तक मिल गई जिसमें संकेत था। यह भाऊसाहेबांची बखर की पुस्तक थी।

यद्यपि वह बखर पर ऐतिहासिक प्रमाण के लिए कभी भी विश्वास नहीं करता था। लेकिन पढ़ने में वे मनोरंजक होते थे। कभी-कभी उसके सुवर्णित किन्तु तोड़े-मरोड़े वर्णन को पढ़ने में मग्न उसे कोई सत्य का अंश मिल जाता था। उसे अब सत्य का एक अंश तीन पंक्तियों वाले वर्णन में मिल गया कि विश्वासराव कैसे मरते-मरते बचा। और फिर विश्वासराव ने अपना घोड़ा उस घमासान युद्ध की ओर मोड़ा जहाँ सर्वोत्तम सैनिक लड़ रहे थे, व उसने उन पर आक्रमण कर दिया। और ईश्वर दयालु थे। एक गोली उसके कान के पास से गुजरी। एक तिल भर का यदि अन्तर नहीं होता तो उसकी मृत्यु हो जाती।

आठ बजे पुस्तकालय अध्यक्ष ने प्रोफेसर को विनम्रता से याद दिलाया कि पुस्तकालय के बन्द होने का समय हो गया था। गंगाधरपंत अपने विचारों से निकला। चारों ओर देखा तो उसे पता लगा कि उस शानदार हॉल में वह अकेला ही पाठक शेष था।
“क्षमा करना, सर, क्या यह पुस्तक कल मेरे प्रयोग के लिए यहाँ रख देंगे? वैसे आप खोलते कब है?”
“आठ बजे, सर” पुस्तकालय का अध्यक्ष मुस्कराया। यहाँ ऐसा पाठक और अनुसंधानकर्ता उसके सामने था। जैसों का वह प्रशंसक था।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-8



As the………………………you know?”

प्रोफेसर ने मेज पर से खड़े होते समय कुछ हस्तलेख अपनी दायीं ओर की जेब मे ठूंस लिए। अनजाने में उसने बखर भी अपनी दायीं जेब में ठूंस लिया।

उसे ठहरने के लिए एक गेस्ट हाऊस मिल गया और उसने सस्ता साधारण भोजन खाया। फिर वह टहलने के लिए आजाद मैदान की ओर चल पड़ा।

उसने मैदान में एक भीड़ को एक पंडाल की ओर जाते हुए देखा। अच्छा कोई भाषण शुरू होने वाला था। अपनी आदत से मजबूर, प्रोफेसर गायतोंडे पंडाल की ओर चल दिया। भाषण जारी था यद्यपि लोग आ जा रहे थे। किन्तु गायतोंडे श्रोताओं को नहीं देख रहा था। वह सम्मोहित होकर मंच की ओर देख रहा था। वहाँ एक मेज व एक कुर्सी थी, परन्तु कुर्सी खाली थी।

सभापति की कुर्सी खाली थी! यह देखकर वह उत्तेजित हुआ। जैसे लोहे का टुकड़ा चुम्बक से आकर्षित होता है, वह तीव्रता से कुर्सी की ओर बढ़ा।
वक्ता वाक्य के बीच में ही रुक गया। वह इतना आश्चर्यचकित था कि बोल न सका। परन्तु श्रोता बोल उठे।
“कुर्सी खाली करो!”
“इस भाषण श्रृंखला का कोई सभापति नहीं है”
“मि० मंच से चले जाओ!”
“कुर्सी तो प्रतीक मात्र है। तुम नहीं जानते?”

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-9



What nonsense………………………of a book.

क्या निरर्थक बात है! क्या कभी सार्वजनिक भाषण किसी मान्य व्यक्ति के सभापतित्व के होता है? प्रोफेसर गायतोंडे ने माईक पर जाकर अपने विचारों की भड़ास निकाली। “महिलाओं व सज्जनों, बिना सभापति के भाषण ऐसा ही है जैसे शेक्सपिअर का हेमलेट नाटक डेन्मार्क के राजकुमार के बिना। मैं आपसे कहता हूँ….”
परन्तु श्रोतागण सुनने को बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। “हमें कुछ न बताओ। हम सभापति की टिप्पणियों, धन्यवाद प्रस्तावों व लम्बी भूमिकाओं से ऊब चुके है।“
“हम तो केवल वक्ता को ही सुनना चाहते हैं।”
“हमने पुरानी परम्परा कभी की समाप्त कर दी है।”
“कृपया मंच खाली करो….”

परन्तु गंगाधरपन्त को 999 सभाओं में बोलने का अनुभव था और उसने पुणे में बहुत प्रतिकूल श्रोताओं का सामना किया था। वह बोलता गया।

शीघ्र ही वह टमाटरों, अंडो व अन्य वस्तुओं की बौछार का निशाना बन गया। लेकिन उसने इस अपमान को वीरता के साथ सुधारने का प्रयास किया। अन्त में श्रोताओं की भीड़ ने उसे शारीरिक रूप से हटाने के लिए मंच पर धावा बोल दिया और भीड़ में गंगाधरपंत कहीं भी दिखाई नहीं दिया।

“मुझे आपको इतना ही बताना था, राजेन्द्र। बस मुझे तो इतना ही पता हैं कि मैं सुबह आजाद मैदान में पड़ा था। परन्तु मैं परिचित संसार में वापस आ गया था। परन्तु मैंने वे दो दिन कहाँ व्यतीत किए जब मैं अनुपस्थित था?”
राजेन्द्र वृत्तांत सुनकर भौंचक्का रह गया। उसे उत्तर देने में कुछ समय लगा।
“प्रोफेसर, ट्रक से टक्कर लगने से पहले आप क्या कर रहे थे?” राजेन्द्र ने पूछा।
“मैं केटास्ट्राफी सिद्धान्त के विषय में सोच रहा था और यह कि वह इतिहास पर कैसे लागू होती है।”
“ठीक! मैं भी यह समझता था।” राजेन्द्र मुस्कराया।

“ऐसे गर्व से न मुस्कराओ। यदि आप समझते है कि मेरा मस्तिष्क क्रीडा कर रहा था और मेरी कल्पना-शक्ति नियन्त्रण से बाहर हो गई थी, तो यह देखो।”
और प्रोफेसर गायतोंडे ने गर्व से महत्त्वपूर्ण प्रमाण प्रस्तुत किया। पुस्तक में से फटा हुआ एक पृष्ठ।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-10



Rajendra read………………………he talked.

राजेन्द्र ने छपे हुए पृष्ठ पर लेख पढ़ा और उसके चेहरे के भाव बदल गए। उसकी मुस्कराहट चली गई और उसके स्थान पर एक गम्भीर भाव आ गया। लग रहा था वह बहुत उत्तेजित था।
गंगाधरपन्त ने अपनी लाभदायक प्रस्थिति को स्पष्ट किया। “जब मैं पुस्तकालय से चला मैंने अनजाने में बखर अपनी जेब में खिसका ली थी। मुझे अपनी गलती का पता तब चला जब मैं अपने भोजन का बिल चुका रहा था। मेरा इरादा इसे अगले दिन वापस करने का था। परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि आजाद मैदान की अफरा-तफरी में पुस्तक खो गई। केवल यह पृष्ठ बचा। सौभाग्य से इस पृष्ठ पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव है।”

राजेन्द्र ने पृष्ठ को फिर पढ़ा। इसमें लिखा था कि विश्वासराव कैसे गोली लगने से बचा और कैसे मराठा सेना के द्वारा इसे अच्छा शकुन माने जाने पर घटना उनके पक्ष में बदल गई।
“अब इसे देखो।” गंगाधरपन्त ने भाऊसाहेबांची बखर की अपनी पुस्तक सम्बन्धित पृष्ठ पर खोली। वर्णन इस प्रकार था–
–और तब विश्वासराव ने अपना घोड़ा उस संकल युद्ध की ओर मोड़ा जहाँ सर्वोत्तम सैनिक लड़ रहे थे और उसने उन पर आक्रमण कर दिया। ईश्वर ने नाराजगी दिखाई। उसे गोली लग गई।

“प्रोफेसर गायतोंडे, आपने मुझे सोच विचार का अवसर दिया है। इस महत्त्वपूर्ण प्रमाण को देखने से पहले मैंने आपके अनुभव को केवल कल्पना ही समझा था। परन्तु तथ्य कल्पना से भी अधिक विचित्र हो सकते हैं, मैं अब ऐसा समझने लगा हूँ।
“तथ्य? तथ्य क्या है? मैं तो जानने के लिए छटपटा रहा हूँ।” प्रोफेसर गायतोंडे ने कहा।

राजेन्द्र ने उसे चुप रहने का इशारा किया और कमरे में घूमने लगा। स्पष्टत: वह भारी मानसिक दबाव में था। अन्त में वह मुड़ा और बोला, “प्रोफेसर गायतोंडे, मैं आपके अनुभव को आज के दो वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर तर्कसंगत बनाने का प्रयास करूँगा। मैं आपको मनवाने में सफल होता हूँ या नहीं, इसका निर्णय तो आप ही कर सकते हैं क्योंकि आप ही इस अद्भुत अनुभव से गुजरे है या ठीक कहा जाए तो केटास्ट्राफिक अनुभव में से।”
“आप कहते जाए, मैं पूरे ध्यान से सुन रहा हूँ।” प्रोफेसर गायतोंडे ने उत्तर दिया। राजेन्द्र कमरे में इधर-उधर घूमता रहा और बातें करता रहा।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-11



“You have………………………manifestations.

आपने उस सेमिनार में केटास्ट्राफी सिद्धान्त के विषय में बहुत कुछ सुना है। हम इसे पानीपत के युद्ध पर लागू करते है। खुले मैदान में आमने-सामने लड़े जाने वाले युद्ध इस सिद्धान्त के बहुत उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। मराठों की सेना अब्दाली की सेना का पानीपत में सामना कर रही थी। दोनों की सेनाओं में कोई अन्तर नहीं था। उनके शस्त्र भी समान थे। इसलिए बहुत कुछ नेतृत्व सेना के मनोबल पर निर्भर करता था। उस महत्त्वपूर्ण घड़ी में पेशवा का पुत्र व उत्तराधिकारी विश्वासराव का मरना निर्णायक सिद्ध हुआ। जैसा इतिहास बताता है, भाऊसाहेब उस मारकाट में घुस गया, और फिर उसका पता न चला। वह लड़ाई में मारा गया था, बच गया, इसका कुछ पता नहीं। परन्तु वह विशेष क्षण अपने नेता के मर जाने का आघात सेना के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण था। उसका मनोबल टूट गया व उनमें लड़ने की भावना नहीं रही। इसके बाद पूर्ण पराजय हुई।

“बिल्कुल, प्रोफेसर! और जो आपने मुझे फटे हुए पृष्ठ पर दिखाया है, वह युद्ध की वह घटना है जो तब हुई जब गोली विश्वासराव को न लगी। यह महत्त्वपूर्ण घटना दूसरी ओर चल पड़ी। और सेना पर भी इसका प्रभाव विपरीत हुआ। इससे उनका मनोबल बढ़ गया और इसी से पूरा अन्तर आया”, राजेन्द्र ने कहा।

“सम्भवत: ऐसा हो। इसी प्रकार के विचार वाटरलू के युद्ध के विषय में प्रकट किए जाते है कि नेपोलियन उसे जीत सकता था। परन्तु हम निराले संसार में रहते हैं जिसका इतिहास अनूठा है। यह धारणा ‘कि ऐसा हो सकता था’ अटकलबाजी के लिए तो ठीक है परन्तु वास्तविकता के लिए नहीं,” गंगाधरपन्त ने कहा।

“मैं इस प्रश्न पर आपसे सहमत नहीं हूँ। वास्तव में इसमें अपने दूसरे बिन्दु पर आता हूँ जो आपको विचित्र लगे। परन्तु मेरी बात पूरी सुनना,” राजेन्द्र ने कहा।
गंगाधरपन्त ने आशापूर्ण तरीके से सुना और राजेन्द्र कहने लगा। आपका वास्तविकता से क्या अभिप्राय हैं? हम इसे सीधे अपनी इन्द्रियों द्वारा अनुभव करते हैं या यन्त्रों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से। परन्तु क्या वहीं तक सीमित है जो हम देखते हैं? क्या यह अन्य तरीके से भी प्रकट होती है?

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-12



“That reality………………………Rajendra said.

वास्तविकता हो सकता है एक मात्र न हो। यह परमाणु तथा उसके संघटक कणों पर प्रयोग करके देखा गया है। जब इन तन्त्रों पर कार्य किया गया तो भौतिक शास्त्रियों ने आश्चर्यजनक खोज की। इन तन्त्रों के व्यवहार की निश्चित भविष्यवाणी नहीं की जा सकती यद्यपि हमें इन तन्त्रों पर लागू होने वाले सभी भौतिक नियमों की जानकारी भी हो।

“एक उदाहरण लें। मैं किसी स्त्रोत से कोई इलेक्ट्रान छोड़ता हूँ। यह कहाँ जाएगा? यदि मैं बन्दूक से किसी विशेष दिशा में गोली चलाता हूँ, तो मुझे पता है कि यह किसी आने वाले समय में कहाँ पहुँचेगी। परन्तु इलेक्ट्रान के विषय में मैं इस प्रकार निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकता। यह यहाँ, वहाँ, कहीं भी हो सकता है। मैं केवल अनुभव से कह सकता हूँ कि किसी निश्चित समय में किस निश्चित स्थान पर मिलने की क्या सम्भावना है।”
“क्वांटम सिद्धान्त में निश्चितता का अभाव!” यह बात मेरे जैसे अज्ञानी इतिहासकार को भी पता है,” प्रोफेसर गायतोंडे ने कहा।

“इसलिए, कल्पना करें विश्व की एक संसार में हलेक्ट्रान यहाँ है, अन्य में वहाँ है, व किसी और में किसी अलग स्थान पर है। जब देखने वाले को पता चल जाए कि वह कहाँ है तो हम जान जाते हैं कि वह किस संसार की बात कर रहा है। परन्तु फिर भी वे वैकल्पिक अलग-अलग संसार में विद्यमान है।” राजेन्द्र अपने विचारों को क्रमबद्ध करने के लिए रुका।
“किन्तु क्या इन दुनियाओं में कोई सम्पर्क है?” प्रोफेसर गायतोंडे ने पूछा।
“हाँ और ना! दोनों दुनियाओं की उदाहरण के लिए कल्पना करें। दोनों में इलेक्ट्रान परमाणु की नाभिक में चक्कर लगा रहा है…”
“जैसे ग्रह सूर्य का चक्कर लगाते हैं।” गंगाधरपन्त बीच में बोला।

“ऐसा नहीं। हमें ग्रहों की निश्चित गमन पथ का पता है। इलेक्ट्रान कई सीमित स्थितियों में घूम रहे हो सकते हैं। इन प्रस्थितियों का प्रयोग उस संसार को पहचानने में किया जा सकता है। पहली प्रस्थिति में इलेक्ट्रान भारी ऊर्जा की हालत में होते हैं। दूसरी प्रस्थिति में यह निम्न ऊर्जा की हालत में होता है। यह उच्च ऊर्जा से निम्न ऊर्जा में छलांग लगा सकता है व किरणों को स्पंदन भेजता है। इस प्रकार एक प्रस्थिति से दूसरी प्रस्थिति से धक्का देकर पहली प्रस्थिति में भेज सकता है। इस प्रकार के एक प्रस्थिति से दूसरी प्रस्थिति में परिवर्तन अति सूक्ष्म तन्त्रों में सामान्य बात है।”
“क्या हो यदि ऐसा दीर्घ तन्त्रों के स्तर पर हो जाए?” राजेन्द्र ने कहा।

The Adventure Class 11 Hindi Explanation – Para-13



“I get………………………address.”

“मैं आपकी बात समझता हूँ। आप यह सुझा रहे हैं कि मैं एक संसार से दूसरे संसार में चला गया और फिर वापस आ गया?” गंगाधरपन्त ने पूछा।
“चाहे यह बात बहुत विलक्षण लगती हैं परन्तु केवल यही स्पष्टीकरण मैं दे सकता हूँ। मेरा सिद्धान्त यह है कि केटास्ट्राफिक प्रस्थितियाँ दुनिया को आगे बढ़ने के लिए पूर्णत: अलग विकल्प प्रस्तुत करती हैं। ऐसी प्रतीत होता है कि जहाँ तक वास्तविकता का सम्बन्ध है, सभी विकल्प व्यवहारिक है। किन्तु द्रष्टा एक समय में उनमें से केवल एक का ही अनुभव कर सकता है।”

“वह परिवर्तन करने से आपको दो संसारों का अनुभव हो गया यद्यपि एक समय में एक का। एक वह जिसमें आप अब रह रहे हैं और एक वह जिसमें आपने दो दिन व्यतीत किए। एक का इतिहास हम जानते हैं, दूसरे का इतिहास अलग है। इनका अलग होना या दो भागों में बँटना पानीपत की लड़ाई में हुआ। आपने न तो भूतकाल में और न ही भविष्य में यात्रा की। आप वर्तमान में ही रह रहे थे किन्तु अलग-अलग संसारों का अनुभव कर रहे थे। नि:सन्देह इसी परिणाम से भिन्न-भिन्न समय पर अलग-अलग संसार विभाजित हो रहे होंगे।”

राजेन्द्र के अपनी बात पूरी होने पर, गंगाधरपन्त ने वह प्रश्न पूछा जो उसे परेशान करने लगा था। “परन्तु मैंने परिवर्तन किया ही क्यों?”
“यदि मैं इसका उत्तर जानता तो मैं एक बड़ी समस्या सुलझा देता। दुर्भाग्यवश, विज्ञान में बहुत-से अनसुलझे प्रश्न हैं और यह उनमें से एक है। किन्तु मैं अनुमान लगाने से तो नहीं रुक सकता।”
राजेन्द्र ने मुस्कराकर आगे कहना शुरू किया, आपको परिवर्तन करने के लिए किसी मुठभेड़ की आवश्यकता होती है। सम्भवत: मुठभेड़ के समय आप केटास्ट्राफी सिद्धान्त के व युद्ध में उसकी भूमिका के विषय में सोच रहे होंगे। हो सकता हैं आप पानीपत के युद्ध के विषय में सोच रहे होंगे। हो सकता है कि आपके मस्तिष्क में न्यूरॉन्स ने इस परिवर्तन को उत्पन्न करने का कार्य किया।”

“अच्छा अनुमान है। मैं सोच रहा था कि यदि पानीपत की लड़ाई का परिणाम अन्य दिशा में होता तो इतिहास किस ओर जाता।” प्रोफेसर गायतोंडे ने कहा। “मेरे हजारवें सभापति पद से भाषण का विषय यही होना था।”

“अब केवल अटकले लगाने की अपेक्षा अपने वास्तविक जीवन के अनुभव का वर्णन करने की अच्छी स्थिति में है।” राजेन्द्र ने हँस कर कहा। लेकिन गंगाधरपन्त गम्भीर था।
“नहीं, राजेन्द्र मेरा हजारवां भाषण आजाद मैदान में हो गया था। जब मुझे अशिष्टतापूर्वक टोका गया था। नहीं, वह प्रोफेसर गायतोंडे ने जो अपने आसन की रक्षा करते हुए गायब हो गया था, अब अन्य किसी भी भाषण सभा का सभापतित्व करते न देखा जाएगा। मैंने पानीपत गोष्ठी के आयोजनकर्त्ताओं को अपने खेद से सूचित कर दिया है।”